बाजार नियामक सेबी ने राइट्स इश्यू के ढांचे में व्यापक परिवर्तन का प्रस्ताव रखा है ताकि इसके आकर्षण में इजाफा हो और जब सूचीबद्ध कंपनियों की तरफ से अतिरिक्त रकम जुटाने की बात हो तो इसे ही जरिया बनाया जाए।
नियामक ने इसके लिए समयसीमा मौजूदा 20 दिन से घटाकर महज तीन दिन करने का प्रस्ताव रखा है। साथ ही शेयरधारक को अपना राइट्स एनटाइटलमेंट (आरई) अपनी पसंद के निवेशकों के हक में त्यागने की अनुमति देना और निवेश बैंकर की नियुक्ति की आवश्यकता समाप्त करना या पेशकश का मसौदा पत्र जमा न कराना शामिल है।
राइट्स इश्यू के अलावा सूचीबद्ध कंपनियां अन्य जरिया मसलन तरजीही आवंटन, पात्र संस्थागत नियोजन (क्यूआईपी) का इस्तेमाल कर सकती हैं। सेबी की तरफ से हुए डेटा के विश्लेषण से पता चलता है कि अभी राइट्स इश्यू इन तीनों में सबसे कम पसंदीदा जरिया है।
राइट्स इश्यू के तहत मौजूदा शेयरधारकों को उनकी शेयरधारिता के अनुपात में कंपनी के नए शेयर जारी किए जाते हैं। तरजीही आवंटन में मोटे तौर पर प्रवर्तक कंपनी में पूंजी का निवेश करते हैं, वहीं क्यूआईपी निवेशकों के चुनिंदा समूह के बीच होता है।
मंगलवार को सेबी की तरफ से जारी चर्चा पत्र में कहा गया है, वास्तविकता यह है कि कंपनी की रकम जुटाने की गतिविधियों में भागीदारी का पहला हक मौजूदा शेयरधारकों का होता है, बावजूद इसके सूचीबद्ध इकाइयां तरजीही इश्यू के जरिये रकम जुटाने को प्राथमिकता देती हैं और इसके लिए प्रवर्तक समेत कुछ चुनिंदा निवेशकों को पेशकश की जाती है। नियामक ने इस पर 10 सितंबर तक सार्वजनिक टिप्पणी मांगी है।
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