ऋणमाफी की सियासत से बिगड़ रही कर्जदारों की आदत
Business Standard - Hindi|November 08, 2024
कुछ महीने पहले आम चुनाव के दौरान एक बड़ा बैंक किसी राज्य में किसानों और सूक्ष्म, लघु और मध्यम औद्योगिक इकाइयों को दिया कर्ज पूरी तरह नहीं वसूल पाया।
तमाल बंद्योपाध्याय
ऋणमाफी की सियासत से बिगड़ रही कर्जदारों की आदत

वजह एक राजनीतिक दल था, जिसके कार्यकर्ताओं ने बैंक के वसूली एजेंटों को उस इलाके में घुसने ही नहीं दिया। मामला इतने पर ही खत्म नहीं हुआ। राजनीतिक दल ने एक चार्टर्ड अकाउंटेंट की मदद से ऋण माफी का फॉर्मूला भी तैयार कर लिया जिसे कर्जदारों के बीच बांटकर बताया गया कि किसे कितनी रकम लौटानी नहीं पड़ेगी।

बाद में राज्य स्तरीय बैंकर समिति (एसएलबीसी) की बैठक में एक वरिष्ठ मंत्री ने बैंकरों से कहा कि वे किसानों को क्रेडिट स्कोर जांचे बगैर ही कर्ज देने लगें। एसएलबीसी ऋणदाताओं की संस्था है। इसमें मौजूद ऋणदाता किसी राज्य में बैंकिंग के विकास और समाज कल्याण के कार्यक्रमों पर काम करते हैं, समन्वय करते हैं और एक-दूसरे से सलाह-मशविरा भी करते हैं। यह भारतीय रिजर्व बैंक की प्रमुख बैंक योजना का हिस्सा है। बैंकर वरिष्ठ मंत्री की बात पर राजी नहीं हुए। उन्होंने मंत्री से कहा कि अगर उन्हें किसानों का क्रेडिट स्कोर जाने बगैर ही कर्ज मंजूर करना और बांटना पड़ा तो वे तथाकथित सेवा क्षेत्र पद्धति अपनाएंगे। इसके तहत कर्ज चाहने वाले को स्थानीय बैंक शाखाओं से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना ही पड़ता है। यह योजना 1989 में उत्पादक ऋण बढ़ाने के लिए शुरू की गई थी। बैंक मंत्री की बात को रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप के बाद नकार सके।

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