• कहा - भारतीय संविधान में विवाह का मौलिक अधिकार नहीं
• समलैंगिकों के हितार्थ कदम उठाएं केंद्र और राज्य सरकारें
• 366 पेज के फैसले को पढ़ने में पीठ ने लिया करीब दो घंटे का समय
समलैंगिक जोड़े सुप्रीम कोर्ट से जिस फैसले की आस लगाए बैठे थे, उसमें उन्हें निराशा हाथ लगी। शीर्ष कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग ठुकरा दी है। कोर्ट ने कहा है कि अदालत कानून नहीं बना सकती, अदालत सिर्फ कानून की व्याख्या कर सकती है। कानून बनाना विधायिका का काम है। विवाह मौलिक अधिकार नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने समलैंगिक जोड़ों की रोजमर्रा की जिंदगी आसान और सुविधाजनक बनाने के लिए केंद्र सरकार से उच्चस्तरीय समिति गठित कर खाते में नामिनी, सेवानिवृत्ति लाभ आदि के मुद्दों पर विचार करने को कहा है। यह भी कहा है कि समलैंगिक लोगों को साथ रहने का अधिकार है और उन्हें प्रताड़ित नहीं किया जाना चाहिए।
मौजूदा कानून, न्यायशास्त्र और व्यक्तिगत अधिकारों की व्याख्या करने वाला यह फैसला चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रविन्द्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने सुनाया। 366 पेज के इस फैसले में पांच न्यायाधीशों में से चार ने अलग-अलग फैसले दिए। सुप्रीम कोर्ट में 20 याचिकाएं थीं, जिनमें समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था। पीठ ने चार अलग-अलग फैसले सुनाने में करीब दो घंटे का समय लिया।
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