ऐतिहासिक दृष्टि से ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तान की राजनीति में नवंबर का महीना अक्सर बहुत महत्वपूर्ण होता है। आप पाएंगे कि पाकिस्तान की राजनीति का रंग बदल देने वाली तमाम घटनाएं अक्तूबर से नवंबर के बीच होती रही हैं । पिछले साल 6 अक्तूबर को आईएसआई के नए डायरेक्टर जनरल की नियुक्ति के साथ शुरू हुए विवादों का क्रम अभी तक रुक नहीं पाया है और अगला अक्तूबर एक बार फिर सामने खड़ा है।
20 अगस्त को इस्लामाबाद में एक रैली में इमरान खान ने आईजी और महिला जज जेबा चौधरी को धमकी दी थी, जिसके बाद उनके खिलाफ आतंकवाद विरोधी कानून के तहत मामला दर्ज किया गया। देर रात उनके खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी हुआ
27 नवंबर को पाकिस्तान सेनाध्यक्ष के जनरल कमर जावेद बाजवा सेवानिवृत्त हो जाएंगे। अटकलें हैं कि उनके कार्यकाल को एक बार फिर साल भर के लिए बढ़ाया जा सकता है। इसके पीछे नवाज शरीफ का गुजरांवाला में दिया गया वह भाषण ध्यान देने योग्य है जिसमें उन्होंने सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा और आईएसआई के तत्कालीन डायरेक्टर जनरल फैज हमीद को संबोधित करते हुए कहा था कि उन्हें 2018 के चुनाव में की गई चुनावी धांधली का जवाब देना होगा। उन्होंने आगे यह भी कहा था कि इमरान खान पाकिस्तानी राजनीति में उनकी लाई हुई गंदगी हैं, जिसे स्वयं उन्हें ही साफ करना होगा। जनरल बाजवा के कार्यकाल में संभावित एक साल की बढ़ोतरी इसी गंदगी को साफ करने का समय देना है। जनरल हमीद मार्च के अंत में सेवानिवृत्त हो रहे हैं। यदि बाजवा चाहेंगे तो अप्रैल, 2023 में भी त्यागपत्र देकर जा सकते हैं, लेकिन तब तक जनरल हमीद सेवानिवृत्त हो चुके होंगे, जिसका सीधा अर्थ मौजूदा सरकार की आंख का कांटा निकालना है।
21 अगस्त को पाकिस्तान के मीडिया नियामक प्राधिकरण पेमरा ने इमरान खान के भाषणों के सजीव प्रसारण पर प्रतिबंध लगा दिया। पेमरा ने कहा कि इमरान खान के भाषण हमारे प्राधिकरण नियमों का खुला उल्लंघन हैं। इसके अलावा ये भाषण संविधान के अनुच्छेद 19 का भी उल्लंघन हैं।
इमरान का बदला लहजा
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वामपंथियों ने छत्रपति शिवाजी की जयंती पर भाग्यनगर में उनका पोस्टर लगाया, तो दिल्ली के जेएनयू में इन लोगों ने शिवाजी के चित्र को फाड़कर फेंका दिया। इस दोहरे चरित्र के संकेत क्या हैं !
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सूर्योदय की धरती पर फिर खिला कमल
त्रिपुरा और नागालैंड की जनता ने शांति, विकास और सुशासन के भाजपा के तरीके पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगाई है। मेघालय में भी भाजपा समर्थित सरकार बनने के पूरे आसार। कांग्रेस और वामदल मिलकर लड़े, लेकिन बुरी तरह परास्त हुए और त्रिपुरा में पैर पसारने की कोशिश करने वाली तृणमूल कांग्रेस को शून्य से संतुष्ट होना पड़ा
जीवनशैली ठीक तो सब ठीक
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