'स्व' शिक्षा की ओर बढ़ते कदम
Panchjanya|September 11, 2022
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 अंग्रेजों द्वारा 1835 में लागू शिक्षा नीति को खत्म कर शिक्षा क्षेत्र को पूरी तरह भारत केंद्रित करने के उद्देश्य से बनी है। इस नीति में ऐसे बीज छुपे हुए हैं कि जिन बीजों के अंकुरित, पुष्पित-पल्लवित होने से भारत का ही नहीं, अपितु सारे विश्व का मार्गदर्शन करने वाली एक अत्यंत शास्त्रीय वैज्ञानिक शिक्षा व्यवस्था का निर्माण होगा। आवश्यकता है इस नीति के प्रभावी क्रियान्वयन की
मुकुल कानिटकर
'स्व' शिक्षा की ओर बढ़ते कदम

भारत में क्रांति शब्द की परिभाषा कुछ भिन्न ही है। सामान्यतः अंग्रेजी के शब्द रिवॉल्यूशन के अनुवाद के रूप में 'क्रांति' शब्द का प्रयोग किया जाता है। इस कारण भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वीरों को क्रांतिकारी कहते हैं। केवल रक्तपात द्वारा परिवर्तन को क्रांति कहने का भाव-बोध मार्क्सवादी, साम्यवादी प्रभाव में वैचारिक विमर्श में सम्मिलित हुआ है। किंतु भारत के सांस्कृतिक चिंतन में क्रांति पूर्ण परिवर्तन को कहते हैं। जब प्रस्थापित रचना और व्यवस्था को जड़ - मूल से रूपांतरित कर नई व्यवस्था की रचना होती है, तब उसे क्रांति संबोधित किया जाता है। क्रांति केवल आघात से ही नहीं होती। सहज, सरल, वैचारिक क्रांति भी संभव है। वास्तव में भारत में परिवर्तन इसी प्रकार से होता है। भारत को 1947 में स्वतंत्रता भी प्रस्थापित व्यवस्था में परिवर्तन करते हुए ही प्राप्त हुई थी। किंतु उसका दुष्परिणाम यह हुआ कि व्यवस्था का परिवर्तन नहीं हुआ, व्यवस्था में भी परिवर्तन हुआ। इसलिए उसी विदेशी व्यवस्था के संचालक जब भारतीय हो गए, उसको हमने स्वातंत्र्य मान लिया किंतु 'स्व' का तंत्र नहीं आया। इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि भारत की स्वतंत्रता मात्र राजनीतिक परिवर्तन तक सीमित रह गई। वैचारिक, भावनात्मक, राष्ट्रीय स्तर पर स्वबोध चिंतन का परिवर्तन होना चाहिए, वह परिवर्तन भारतीय स्वतंत्रता के समय नहीं हुआ।

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