भारत शिक्षा और शोध के लिए पहले से जाना जाता है। समग्र शिक्षा भारत की पहचान थी। शिक्षा और कौशल एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। गुरुकुल शिक्षा पद्धति में तड़के उठने से लेकर साफ-सफाई, योगासन और घर का काम, पानी भरना, गाय की सेवा, जलावन इकट्ठा करना, पूजा-पाठ का आयोजन करना, वैयक्तिक स्वास्थ्य की ओर ध्यान, उच्चारण, लेखन, तर्क, न्याय, सांख्य, पाक कला, कृषि कार्य से परिचित होना शिक्षा के भाग थे। पुराने ग्रंथों के पठन-पाठन के साथसाथ उन पर भाष्य लिखना, परिभाषित करना अपनी सामर्थ्य के अनुसार प्रयोगों से उन सूत्रों को सिद्ध करने की कला अपने आप छात्रों में उत्पन्न होती थी। बच्चों में कौतूहल जगाना, प्रसन्न करने की मनःस्थिति को तैयार करना और उनको जिज्ञासु के रूप में प्रेरित करना हमारी प्राचीन विद्या परंपरा का प्रमुख उद्देश्य था।
जीवन प्रक्रिया
शिक्षा और शोध साथ-साथ चलने वाली जीवन प्रक्रिया है। भारतीय विद्या के अनुसार शोध सिखाया नहीं जाता, वह अपने आप सीखा जाता है। संगीत की तरह, चित्रकला की तरह प्रशिक्षण और गुरु शोधार्थी को प्रेरणा देते हैं और नए सिरे से सोचने और उसको अमल करने को मजबूर करते हैं। आज बड़े पैमाने पर विश्वविद्यालयों में, शोध संस्थानों में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में, विज्ञान संस्थानों में शोध किया जाता है। तकनीकी में, अभियांत्रिकी में, सॉफ्टवेयर निर्माण में हमारे शोधार्थी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोध कर रहे हैं। हम भारतीय गणित में तेज हैं। वैज्ञानिक शोध में प्रमुखतः रोजमर्रा की समस्याओं को समझने के लिए जो शोध होना चाहिए, उनमें हम अभी पिछड़े हैं। उदाहरण स्वरूप हमारे समाज में पीने के पानी की किल्लत है, लेकिन पूरे देश में अच्छा पानी बरसता है। इस बरसते शुद्ध पानी को बचाने के लिए तंत्र बनाना, इससे जुड़े विज्ञान को विकसित करना आदि की बहुत जरूरत है। इस विषय में भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु कुछ हद तक सफल हुआ है। वैसे तो बरसात के पानी को बचाकर सुरक्षित रखने का ज्ञान हमारे समाज में पहले से है। वनवासी क्षेत्रों में बहुत कम खर्चे में बरसात के पानी को सुरक्षित रखने के तंत्र मौजूद हैं।
जनजातियों की कला
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शिक्षा, स्वावलंबन और संस्कार की सरिता
रुद्रपुर स्थित दूधिया बाबा कन्या छात्रावास में छात्राओं को निःशुल्क शिक्षा के साथ-साथ संस्कार और स्वावलंबन का पाठ पढ़ाया जा रहा। इस अनूठे छात्रावास के कार्यों से अनेक लोग प्रेरणा प्राप्त कर रहे
शिवाजी पर वामंपथी श्रद्धा!!
वामपंथियों ने छत्रपति शिवाजी की जयंती पर भाग्यनगर में उनका पोस्टर लगाया, तो दिल्ली के जेएनयू में इन लोगों ने शिवाजी के चित्र को फाड़कर फेंका दिया। इस दोहरे चरित्र के संकेत क्या हैं !
कांग्रेस के फैसले, मर्जी परिवार की
कांग्रेस में मनोनीत लोगों द्वारा 'मनोनीत' फैसले लिये जा रहे हैं। किसी उल्लेखनीय चुनावी जीत के बिना कांग्रेस स्वयं को विपक्षी एकता की धुरी मानने की जिद पर अड़ी है जो अन्य को स्वीकार्य नहीं हैं। अधिवेशन में पारित प्रस्ताव बताते हैं कि पार्टी के पास नए विचार के नाम पर विफलताओं का जिम्मा लेने के लिए खड़गे
फूट ही गया 'ईमानदारी' का गुब्बारा
अरविंद केजरीवाल सरकार की 'कट्टर ईमानदारी' का ढोल फट चुका है। उनकी कैबिनेट के 6 में से दो मंत्री सलाखों के पीछे। शराब घोटाले में सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय की जांच की आंच कभी भी केजरीवाल तक पहुंच सकती है
होली का रंग तो बनारस में जमता था
होली के मौके पर होली गायन की बात न चले यह मुमकिन नहीं। जब भी आपको होली, कजरी, चैती याद आएंगी, पहली आवाज जो दिमाग में उभरती है उसका नाम है- गिरिजा देवी। वे भारतीय संगीत के उन नक्षत्रों में से हैं जिनसे हिन्दुस्थान की सुबहें आबाद और रातें गुलजार रही हैं। उनका ठेठ बनारसी अंदाज। सीधी, खरी और सधुक्कड़ी बातें, लेकिन आवाज में लोच और मिठास। आज वे हमारे बीच नहीं हैं। अब उनके शिष्यों की कतार हिन्दुस्थानी संगीत की मशाल संभाल रही है। गिरिजा देवी से 2015 में पाञ्चजन्य ने होली के अवसर पर लंबी वार्ता की थी। इस होली पर प्रस्तुत है उस वार्ता के खास अंश
आनंद का उत्कर्ष फाल्गुन
भक्त और भगवान का एक रंग हो जाना चरम परिणति माना जाता है और इसी चरम परिणति की याद दिलाने प्रतिवर्ष आता है धरती का प्रिय पाहुन फाल्गुन। इसीलिए वसंत माधव है। राधा तत्व वह मृदु सलिला है जो चिरंतन है, प्रवाहमान है
नागालैंड की जीत और एक मजबूत भाजपा
नेफ्यू रियो 5वीं बार नागालैंड के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।
सूर्योदय की धरती पर फिर खिला कमल
त्रिपुरा और नागालैंड की जनता ने शांति, विकास और सुशासन के भाजपा के तरीके पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगाई है। मेघालय में भी भाजपा समर्थित सरकार बनने के पूरे आसार। कांग्रेस और वामदल मिलकर लड़े, लेकिन बुरी तरह परास्त हुए और त्रिपुरा में पैर पसारने की कोशिश करने वाली तृणमूल कांग्रेस को शून्य से संतुष्ट होना पड़ा
जीवनशैली ठीक तो सब ठीक
कोल्हापुर स्थित श्रीक्षेत्र सिद्धगिरि मठ में आयोजित पंचमहाभूत लोकोत्सव का समापन 26 फरवरी को हुआ। इस सात दिवसीय लोकोत्सव में लगभग 35,00,000 लोग शामिल हुए। इन लोगों को पर्यावरण को बचाने का संकल्प दिलाया गया
नाकाम किए मिशनरी
भारत के इतिहास में पहली बार बंजारा समाज का महाकुंभ महाराष्ट्र के जलगांव जिले के गोद्री ग्राम में संपन्न हुआ। इससे पहली बार भारत और विश्व को बंजारा समाज, संस्कृति एवं इतिहास के दर्शन हुए। एक हजार से भी ज्यादा संतों और 15 लाख श्रद्धालुओं ने इसमें भाग लिया। इससे बंजारा समाज को हिन्दुओं से अलग करने और कन्वर्ट करने की मिशनरियों की साजिश नाकाम हो गई