यही समय है, सही समय है
Panchjanya|October 02, 2022
परिवार राष्ट्र की सबसे प्रारंभिक इकाई है। परिवार ही वह इकाई है जो संस्कृति को पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाती है। पर आज के उपभोक्तावादी और व्यक्तिवादी दौर में जीवन मूल्य बदल गए हैं जिससे परिवार संस्था के प्रति दुराग्रह बढ़ा है
प्रो. रसाल सिंह
यही समय है, सही समय है

केरल उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने तलाक के एक मामले की सुनवाई करते हुए वर्तमान समय में वैवाहिक संबंधों की स्वार्थपरता और टूटन को रेखांकित किया है। न्यायमूर्ति ए. मोहम्मद मुश्ताक और न्यायमूर्ति सोफी थॉमस की पीठ ने वर्तमान सामाजिक परिदृश्य पर अत्यंत सटीक टिप्पणी करते हुए समाज को आईना दिखाने का सराहनीय कार्य किया है। इस पीठ ने कहा है कि आजकल की युवा पीढ़ी का एक वर्ग विवाह को एक अनावश्यक बुराई और बोझ के रूप में देखने लगा है। यह वर्ग उत्तरदायित्वहीन जीवन जीते हुए आनन्द उठाना चाहता है और विवाह जैसी सामाजिक जिम्मेदारी से बचना चाहता है। इसका विकल्प उसने 'लिव-इन' सम्बन्ध के रूप में ढूंढ निकाला है। युवा पीढ़ी का यह वर्ग पत्नी (वाइफ) को 'सदा के लिए समझदारी वाले निवेश' (वाइज इन्वेस्टमेंट फॉर एवर) की जगह 'हमेशा के लिए आमंत्रित चिंता' (वरी इन्वाइटेड फॉर एवर) के रूप में देखता है। लड़कियों के मन में पति को लेकर भी कमोबेश यही सोच हावी है। भले ही न्यायालय ने अपनी टिप्पणी का दायरा केरल के समाज तक सीमित रखा है; लेकिन सच्चाई यह है कि इस प्रकार का चलन पूरे भारत में बढ़ रहा है। शिक्षित, शहरी और समृद्ध वर्ग में भले ही यह प्रवृत्ति अधिक दिख रही हो; लेकिन अशिक्षित/अल्पशिक्षित, ग्रामीण और गरीब तबका भी इससे अछूता नहीं है। विवाह संस्था के प्रति अनास्थावान युवा पीढ़ी पश्चिम प्रेरित और उपभोक्तावादी संस्कृति की शिकार है। यह विवाह संस्था को खोखला और निष्प्राण करने पर उतारू है। युवा पीढ़ी का यह वैचारिक प्रतिस्थापन चिंताजनक हैक यह प्रवृत्ति बदलते जीवन मूल्यों और प्राथमिकताओं का परिणाम है। निःसंदेह, न्यायालय की यह टिप्पणी सामाजिक विचलन की सार्वजनिक स्वीकृति और अभिव्यक्ति है।

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