पूज्य भाई श्री ने कहा कि विचार से विश्व बनता है। अतः समाज और राष्ट्र में किस प्रकार का चिंतन चल रहा है, ये बड़ा ही महत्वपूर्ण है। उस राष्ट्र, समाज के बच्चों को किस प्रकार की शिक्षा दी जाती है, उन्हें क्या सिखाया जाता है, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है।
आक्रमणकारी अपने बलबूते पर या सामने वाले की कमजोरी के चलते विजयी बन जाएं, उनके ऊपर राज भले करें, परंतु उनके दिलोदिमाग पर तब तक राज नहीं कर सकते, जब तक कि उनकी पूरी शिक्षा प्रणाली को अपने कब्जे में ना कर लें। हूण आए, मुगल आए, लेकिन जब अंग्रेज आए तो उन्होंने शिक्षा प्रणाली पर कब्जा किया और इसने बहुत नुकसान पहुंचाया।
परिणाम यह कि हम आजाद तो हो गए, हमने आजादी का अमृत महोत्सव भी मनाया परन्तु कहीं ना कहीं, वो मानसिक गुलामी हमारे भीतर से नहीं गई। कई लोग तो ये भी कहते हैं कि अंग्रेजों ने बहुत गुड गवर्नेस दिया। उन्हें चाहिए था मिडिल मैनेजमेंट। इसलिए हिंदुस्थान में शिक्षा प्रणाली ही इस तरह की लागू की गई, जिससे पढ़ने वालों में यस बॉस मानसिकता कायम हो जाए। केवल उनका श्रेष्ठ है, यही नहीं, तुम्हारे पास जो है, वो निकृष्ट है - ये भी एक पूर्वाग्रह हमारे लोगों के मन में बिठा दिया गया। विचार बदल गया और भारत का पूरा परिवेश बदल गया। कोई यदि कहे कि श्रीमद्भागवत में केवल मोक्ष संबंधी चर्चा ही है, तो वे लोग भागवत जी के साथ अन्याय कर रहे हैं। मोक्ष परिणाम है। किसका? पहले वाले तीन पुरुषार्थ-धर्म, अर्थ और काम का संपादन आपने सही ढंग से किया है तो मोक्ष तो होना ही है।
'धर्मात् अर्थश्च कामश्च स किमर्थ न सेव्यते।' धर्मपूर्वक संपादित किया हुआ अर्थ, धर्मपूर्वक संपादित किया हुआ काम पुरुषार्थ अंत में, अर्थ और धर्म, दोनों के प्रति आपके मन में विरक्ति पैदा करेगा ही। और तब एक समय आएगा कि आप कहेंगे, संन्यस्तं मया। संन्यास का अर्थ होता है त्याग। ये धर्म है। हम धार्मिक कर्मकांडों की बात नहीं कर रहे हैं। उच्च न्यायालय ने भी कहा, हिंदुत्व जीवन जीने का मार्ग है।
भागवत जी के तीन मूल संदेश
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