अनगिनत पौराणिक एवं ऐतिहासिक प्रसंगों की उल्लासमय स्मृतियों से जुड़ा दीपावली का पांच दिवसीय प्रकाश पर्व मानव सभ्यता का प्राचीनतम पर्व है। पुराणों और अन्य धर्मशास्त्रों में वर्णित दीपावली के अनेक विविध प्रसंगों के साथ प्राचीन काल से भारत आ रहे विदेशी यात्रियों ने भी इसका उल्लेख हर्ष- निमग्न समाज के एक जीवन्त राष्ट्रीय पर्व के रूप में किया है । सिंधु घाटी सभ्यता (जो अब 8000 वर्ष प्राचीन सिद्ध हो रही है) के पुरावशेषों में प्राप्त पक्की मिट्टी के दीपों सहित, दीप श्रृंखला युक्त मातृ देवी की प्रतिमा और घरों के बाहर दीप आलिन्द उस काल में भी दीपों के किसी पर्व का अस्तित्व सिद्ध करते हैं।
त्रेतायुग में 14 वर्ष के वनवास के बाद भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने पर उल्लासपूर्वक दीपों के इस पर्व को मनाए जाने के प्रसंग के अतिरिक्त इस पर्व से अनेक विविध पौराणिक प्रसंग जुड़े हैं। पुराणों में वर्णित पृथ्वी के प्रथम सम्राट महाराज पृथु द्वारा भूमि को उपजाऊ बना, बीज उन्नयन के साथ कृषि कर्म के विकास के आख्यान, दीपावली पर माता लक्ष्मी के प्राकट्य और महालय के बाद पितरों के पथ को आलोकित करने जैसे अनगिनत प्रसंग समय-समय पर इस पर्व से जुड़ते चले गए।
सदियों पुरानी परंपरा
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