यहां आकर हो जाती है बोलती बंद
Panchjanya|December 18, 2022
संविधान का 'हम' बहुत व्यापक है। भारत के लोग बिना किसी भेद के इस 'हम' में शामिल हैं। फिर अलग-अलग कानून क्यों? सभी पंथनिरपेक्ष शक्तियों को मुक्त हृदय से समान नागरिक संहिता का समर्थन करना चाहिए
डॉ. देवेंद्र दीपक
यहां आकर हो जाती है बोलती बंद

मानता का घोड़ा एक जगह आकर रुक जाता है और वह बिंदु है समान नागरिक संहिता- कभी दो कदम आगे, तो कभी चार कदम पीछे। जब से भारत स्वतंत्र हुआ, संविधान निर्माण के समय से आज तक समान नागरिक संहिता का घोड़ा उसी स्थान पर खड़ा है। पूरा देश एक है। हम सब एक जन हैं। हमारे संविधान का प्रारम्भिक पद है- 'हम भारत के लोग।' सबके लिए एक जैसी दण्ड व्यवस्था । तो समान नागरिक संहिता क्यों एक नहीं? संविधान का 'हम' बहुत व्यापक है। भारत के लोग बिना किसी भेद के इस 'हम' में शामिल हैं।

पंथनिरपेक्षता का तकाजा है कि सभी मत-पंथ के नागरिकों की समान संहिता हो। ऐसे में सभी पंथनिरपेक्ष शक्तियों को मुक्त हृदय से समान नागरिक संहिता का समर्थन करना चाहिए। हम रोज सुनते हैं- सर्व धर्म समभाव ! सर्व धर्म समभाव में विश्वास रखने वाले तत्व जो भी हों, कहीं भी हों, ऐसे सभी तत्व समान नागरिक संहिता के पक्ष में खड़े हों, यही उनकी सोच-समझ का प्रमाण होगा। समाजवाद का लक्ष्य है- समतावादी समाज की रचना। इस समाज रचना में मजहब के आधार पर भेद क्यों? सभी समाजवादी और वामपंथी शक्तियों को भी समान नागरिक संहिता के समर्थन में आगे आना चाहिए।

هذه القصة مأخوذة من طبعة December 18, 2022 من Panchjanya.

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