भारत अब अपनों हितों के संरक्षण के लिए अतीत की संकोची और दबाव में रहने की प्रवृत्ति को त्याग चुका है। उसने स्वतंत्रता के बाद सभी क्षेत्रों में विकास के पथ पर स्थिर एवं दृढ़ उन्नति की है और सतत अग्रसर है। परंतु पाकिस्तान यहां भी भारत के विकास मार्ग को अवरुद्ध करने का कोई भी मौका जाने नहीं देता। उसके एक ऐसे ही प्रयास के विरुद्ध भारत ने ऐसा ऐतिहासिक कदम उठाया है जिसने पाकिस्तान के समक्ष चुनौतीपूर्ण स्थिति उत्पन्न कर दी है।
भारत ने भारत और पाकिस्तान के मध्य नदियों के जल का बंटवारा करने वाले 1960 में हुए सिंधु जल समझौते में संशोधन के लिए पाकिस्तान को नोटिस जारी किया है। उल्लेखनीय है कि इस संधि के 62 वर्ष के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब भारत ने सिंधु जल समझौते में संशोधन की मांग की है। हालांकि भारत के लिए भेदभावपरक इस समझौते के विषय में हमारा जनमानस समय-समय पर इस समझौते को रद्द करने की मांग करता आया है। पुलवामा के आतंकी हमले के बाद फरवरी 2019 में भारत के तत्कालीन परिवहन और जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए कहा भी था कि पाकिस्तान की इन आतंकी नीतियों के विरुद्ध, भारत, पाकिस्तान में बह रहे अपने हिस्से के पानी को रोक सकता है।
दरअसल, स्वतंत्रता के पश्चात भारत सरकार द्वारा कई अदूरदर्शी कदम तत्कालीन दबावों में उठाए गए जिनमें हित पूरी तरह संरक्षित नहीं थे। वैश्विक परिस्थितियां बदलने पर भारत सरकार ने अतीत में दबाववश किए गए उन समझौतों, कदमों की समीक्षा की है और वह राष्ट्रीय हित एवं अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप उन्हें ठीक करने की राह पर है।
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