सृष्टि को सहेजने की सीख देती है शिवपूजा
Panchjanya|February 19, 2023
भगवान् शिव अपने संपूर्ण स्वरूप से जिस तरह समूची प्रकृति को रूपायित करते हैं, वह अपने आप में विलक्षण है। शिव की आराधना हमें प्रकृति को सहेजना सिखाती है
पूनम नेगी
सृष्टि को सहेजने की सीख देती है शिवपूजा

र्यावरण संरक्षण आज हमारी सर्वाधिक ज्वलंत समस्या है और देवाधिदेव शिव प्राकृतिक संतुलन के महानतम देवता। भौतिक सुखों से दूर आत्मिक सुख और जन । कल्याण के सोच के साथ शिव जिस धैर्य और दृढ़ता के साथ प्रकृति की गोद में रमते हैं, वैसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। प्राकृतिक परिवेश में जीने का सुकूनदायी एहसास शिव के ईश्वरीय स्वरूप को हमारे लिए और विशेष बनाता है। शिव का अर्द्धनारीश्वर स्वरूप सामाजिक संतुलन का बेजोड़ उदाहरण है। एक ऐसी अद्भुत परिकल्पना जिसमें एक ओर आदिशक्ति मां पार्वती की सुंदर और कोमल काया और दूसरी ओर शिव का कठोर बदन | वैदिक दर्शन इस अर्द्धनारीश्वर स्वरूप की व्याख्या करते हुए कहता है कि महादेव की यही सार्वभौमिकता प्रकृति का मूल उत्स है। शिव और शक्ति पृथक नहीं, अपितु एक ही हैं। शक्ति के बिना 'शिव' सिर्फ शव हैं और शिव यानी कल्याण भाव के बिना शक्ति विध्वंसक। इनके संतुलन में ही सृष्टि का समूचा क्रिया व्यापार निहित है, ब्रह्माण्ड गतिशील है। महादेव का अर्द्धनारीश्वर स्वरूप हमारी उत्कृष्ट ऋषि मनीषा का अनूठा तत्वदर्शन है जिसमें स्त्री-पुरुष, प्रकृति - पुरुष, धर्म- अर्थ, काम-मोक्ष एवं भौतिक-अध्यात्म का दिव्य संतुलन व समन्वय निहित है।

शिव परिवार भी परस्पर धुर विरोधी भावों के बावजूद संतुलन व समन्वय का जो अनोखा उदाहरण प्रस्तुत करता है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। एक ओर निरभ्र खुले आकाश तले कैलाश के हिमआलय में समाधिष्ठ नितांत निर्लिप्त और वैरागी शिव और दूसरी ओर समूचे श्रीसौभाग्य से सुशोभित उनकी अर्धांगिनी जगद्जननी मां पार्वती। ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय देव सेनापति तथा कनिष्ठ पुत्र प्रथम पूज्य गणपति।

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