शक्ति की प्रतीक देवी दुर्गा
Jyotish Sagar|September 2022
शारदीय नवरात्र पर विशेष
डॉ. हनुमान प्रसाद उत्तम
शक्ति की प्रतीक देवी दुर्गा

ह समस्त संसार शक्तिमय है। नास्तिक से नास्तिक व्यक्ति को भी अन्ततोगत्वा यह स्वीकार करना पड़ता है कि इस संसार में ऐसी कोई अदृश्य शक्ति अवश्य है, जिसके कारण यह ब्रह्माण्ड निश्चित नियमों से बँधकर अपने यात्राक्रम को आगे बढ़ा रहा है, भले ही वह व्यक्ति उस अदृश्य शक्ति को ईश्वर नहीं मानकर प्रकृति का नाम दे। वह शक्ति ही इस विश्व को जन्म देती है, उसका पालन करती है। इस कार्य संचालन के लिए हमारे यहाँ तीन देवताओं की कल्पना की गई है। ब्रह्मा सृष्टि को जन्म देते हैं, विष्णु उसका पालन करते हैं और रुद्र अर्थात् महादेव उसका संहार करते हैं। तीनों ही देवताओं के साथ अपनी-अपनी शक्ति जुड़ी हुई है। उनके नाम अलगअलग हैं। ब्रह्मा के साथ महा सरस्वती, विष्णु के साथ महालक्ष्मी और रुद्र के साथ महाकाली । मूल रूप में इन सभी शक्तियों का एक ही रूप है। वह है शक्ति की प्रतीक देवी दुर्गा।

वैदिक साहित्य में ‘शक्ति सृजति ब्रह्माण्ड' कहकर जिसकी ओर इंगित किया गया है वह देवी दुर्गा ही है। ऋग्वेद में देवी अपना परिचय इस शब्दों में देती हैं, “मैं स्वयं समग्र जगत की ईश्वरी हूँ। उपास्य तत्त्वों में मैं ही श्रेष्ठ हूँ। मैं ही एकमात्र उपास्य हूँ। मैं ही सम्पूर्ण जगत् में हूँ। मुझे तुम सर्वरूप में देख रहे हो, परन्तु पहचान नहीं पा रहे हो ।”

देवीभागवत् में उनके विराट् स्वरूप का वर्णन इन शब्दों में किया गया है, "उनके विराट् स्वरूप के प्रदर्शन के समय आकाश उनका मस्तक, विश्व उनका हृदय, पृथ्वी जंघा, वेद वाणी और वायु प्राण थे। चन्द्रमा और सूर्य उनके नेत्र थे, दिशाएँ कान थीं, पाताल नाभि, ज्योतिश्चक्र वक्ष, जनलोक मुख तथा पलकें दिन-रात थीं।” स्पष्ट हो यह स्वरूप उस शक्ति के अतिरिक्त और किसी का नहीं हो सकता, जो अदृश्य रूप में इस विश्व के कण-कण में व्याप्त है।

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