मकर संक्रान्ति का पर्व प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है? इसका भी एक कारण है। हम जानते हैं कि आकाश मण्डल में ग्रह एवं नक्षत्रों की स्थिति सदैव एक समान नहीं रहती। हमारी पृथ्वी अपने अक्ष एवं कक्ष मार्ग पर निरन्तर चक्कर लगाती रहती है। पृथ्वी की गोलाकार आकृति एवं अक्ष पर उसके भ्रमण के कारण ही रात-दिन होते हैं। पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सम्मुख पड़ता है, वहाँ दिन एवं जो भाग सूर्य के सम्मुख नहीं पड़ता, वहाँ रात होती है। पृथ्वी की यह गति 'दैनिक गति' कहलाती है।
पृथ्वी की 'वार्षिक गति' भी होती है, जिसमें पृथ्वी अपने कक्ष तल पर घूमती हुई एक वर्ष में सूर्य का एक चक्कर लगा लेती है। भूअक्ष लम्बवत् स्थिति से 23½ ° झुका हुआ है और सदैव एक ही ओर झुका रहता है, जिससे परिक्रमा के समय भूमण्डल के विभिन्न स्थानों की सापेक्ष स्थिति बदलती रहती है, अतः ‘अयन रेखाओं' का निर्धारण होता है। जब सूर्य की गति दक्षिण से उत्तर की ओर होती है, तब उसे 'उत्तरायण' एवं जब उत्तर से दक्षिण की ओर होती है, तो उसे ‘दक्षिणायन' कहते हैं। इस प्रकार पूरा वर्ष 'उत्तरायण एवं 'दक्षिणायण' दो भागों में बराबर-बराबर बँटा होता है। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में गमन 'संक्रमण' कहलाता है। 14 जनवरी को ही सूर्य प्रतिवर्ष अपनी राशि परिवर्तन कर 'दक्षिणायन' से 'उत्तरायण' होकर मकर राशि में प्रवेश करता है। इसलिए मकर संक्रान्ति का पर्व मनाया जाता है।
भारतीय ज्योतिष में मकर राशि का प्रतीक घड़ियाल माना जाता है, जिसका सिर हिरण जैसा होता है, किन्तु पाश्चात्य ज्योर्तिविद् मकर राशि का प्रतीक बकरी को मानते हैं। हिन्दू धर्म में मकर (घड़ियाल) को एक पवित्र जीव माना जाता है।
हिन्दुओं के अधिकांश देवताओं का पर्दापण उत्तरी गोलार्ध में ही हुआ है और चूँकि भारत भी उत्तरी गोलार्ध में ही है। इसलिए मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य की कक्षा में हुए परिवर्तन को अन्धकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है। मकर संक्रान्ति से ही दिन में वृद्धि होती जाती है और क्रमशः रात का समय छोटा होता जाता है। इस प्रकार प्रकाश में वृद्धि होती है एवं अन्धकार में कमी आती है।
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बारहवाँ भाव : मोक्ष अथवा भोग
किसी भी जन्मपत्रिका के चतुर्थ, अष्टम और द्वादश भाव को 'मोक्ष त्रिकोण भाव' कहा जाता है, जिसमें से बारहवाँ भाव 'सर्वोच्च मोक्ष भाव' कहलाता है। लग्न से कोई आत्मा शरीर धारण करके पृथ्वी पर अपना नया जीवन प्रारम्भ करती है तथा बारहवें भाव से वही आत्मा शरीर का त्याग करके इस जीवन के समाप्ति की सूचना देती है अर्थात् इस भाव से ही आत्मा शरीर के बन्धन से मुक्त हो जाती है और अनन्त की ओर अग्रसर हो जाती है।
रामजन्मभूमि अयोध्या
रात के सप्तमोक्षदायी पुरियों में से एक अयोध्या को ब्रह्मा के पुत्र मनु ने बसाया था। वसिष्ठ ऋषि अयोध्या में सरयू नदी को लेकर आए थे। अयोध्या में काफी संख्या में घाट और मन्दिर बने हुए हैं। कार्तिक मास में अयोध्या में स्नान करना मोक्षदायी माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहाँ भक्त आकर सरयू नदी में डुबकी लगाते हैं।
जीवन प्रबन्धन का अनुपम ग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता
यह सर्वविदित है कि महाभारत के युद्ध में ही श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था। यह उपदेश मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी (11 दिसम्बर) को प्रदत्त किया गया था। महाभारत के युद्ध से पूर्व पाण्डव और कौरवों की ओर से भगवान् श्रीकृष्ण से सहायतार्थ अर्जुन और दुर्योधन दोनों ही गए थे, क्योंकि श्रीकृष्ण शक्तिशाली राज्य के स्वामी भी थे और स्वयं भी सामर्थ्यशाली थे।
तरक्की के द्वार खोलता है पुष्कर नवांशस्थ ग्रह
नवांश से सम्बन्धित 'वर्गोत्तम' अवधारणा से तो आप भली भाँति परिचित ही हैं। इसी प्रकार की एक अवधारणा 'पुष्कर नवांश' है।
सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
गया हिन्दुओं का पवित्र और प्रधान तीर्थ है। मान्यता है कि यहाँ श्रद्धा और पिण्डदान करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है, क्योंकि यह सात धामों में से एक धाम है। गया में सभी जगह तीर्थ विराजमान हैं।
सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।