महापर्व नवरात्र उपासना विधि
Jyotish Sagar|January 2023
भगवान् राम को देवर्षि नारद जी ने रावण का वध करने और सीता को पुनः प्राप्त करने के लिए नवरात्र व्रत का उपदेश किया था। भगवान् राम तथा लक्ष्मण ने किष्किन्धा पर्वत पर आश्विन (शारदीय) नवरात्र में उपवासपूर्वक विधि-विधानपूर्वक पूजन किया।
ओमप्रकाश दार्शनिक
महापर्व नवरात्र उपासना विधि

श्री मद्देवी भागवत आदि पुराणों एवं नाना शास्त्रों में नवरात्र की महिमा का वर्णन किया गया है। एक संवत्सर (वर्ष) में चार नवरात्र मनाए जाते हैं, जो कि चैत्र, आषाढ़, आश्विन तथा माघ की शुक्लपक्ष प्रतिपदा से नवमी तक नौ दिन के होते हैं। इनमें चैत्र तथा आश्विन नवरात्र मुख्य है तथा आषाढ़ और माघ मास के नवरात्र 'गुप्त नवरात्र' के नाम से जाने जाते हैं। चैत्र और आश्विन मास के नवरात्र क्रमश: बासन्तिक और शारदीय नवरात्र के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनमें भी शारदीय नवरात्रों की प्रधानता है। सम्पूर्ण प्राणियों के लिए शरद् और बसन्त ये दोनों ऋतुएँ 'युगद्रष्ट्र' नाम से कही गई हैं। ये दोनों ऋतुएँ सांसारिक प्रणालियों के लिए रोगकारक तथा महान् कष्टप्रद मानी गई हैं। इन ऋतुओं में प्रकृति का संहारक रूप प्रकट होता है और भगवती प्रकृतिरूपा हैं, अत: इन ऋतुओं के आगमन पर सभी को भगवती चण्डी की उपासना अवश्य करनी चाहिए।

नवरात्र व्रत-पूजन आरम्भ करने का प्रशस्त समय : नवरात्र के आरम्भ में अमावस्या युक्त प्रतिपदा तिथि वर्जित होती है तथा द्वितीया युक्त प्रतिपदा तिथि शुभ होती है। इसी प्रकार आरम्भ में कलश स्थापना के समय चित्रा नक्षत्र धन का नाश तथा वैधृति में पुत्र का नाश होता है। नित्यार्चन और विसर्जन ये सभी प्रातः काल में ही शुभ होते हैं, अत: चित्रा अथवा वैधृति के अधिक समय तक होने तक होने की स्थिति में नवरात्र का प्रारम्भ घट स्थापना इत्यादि मध्याह्न काल (अभिजित मुहूर्त अर्थात् दिनमान के आठवें भाग) में करना चाहिए। प्रतिपदा में हस्त नक्षत्र हो, तो उस समय का पूजन उत्तम माना जाता है।

नवरात्र में किसकी उपासना करें? : वैसे तो बासन्तिक नवरात्र में विष्णु और शारदीय नवरात्र में शक्ति की उपासना की प्रधानता है, किन्तु शक्ति और शक्तिधर ये दोनों ही तत्त्व अत्यन्त व्यापक तथा परस्पर अभिन्न हैं, अत: दोनों नवरात्रों में विष्णु जी एवं शक्ति दोनों की उपासना की जा सकती है। शक्ति की उपासना में श्रीमद्देवी भागवत, कालिका पुराण, मार्कण्डेय पुराण, नवार्ण मन्त्र का पुरश्चरण, नवचण्डी, शतचण्डी, सहस्रचण्डी, अयुत चण्डी तथा कोटि चण्डी यज्ञ आदि होते हैं तथा शक्तिधर की उपासना में श्रीमद् भागवत, वाल्मीकि रामायण, रामचरितमानस, अखण्ड रामनाम संकीर्तन आदि किया जाता है।

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