सम्पाति ने की वानरों की सहायता
Jyotish Sagar|January 2023
गंगातट पर चल रही रामकथा के 23वें दिन किष्किंधाकाण्ड के प्रसंगों का श्रोतागण आनन्द ले रहे हैं। स्वामी जी कथा को रोचक बनाते हुए श्रोतागणों को भक्तिरस का पान करवा रहे हैं। स्वयंप्रभा से विदा लेकर वानरगण हनूमान जी, अंगद, जाम्बवन्त आदि के साथ समुद्र तट पर खड़े हुए हैं। अब कथा में आगे .......
सम्पाति ने की वानरों की सहायता

स्वामी जी कथा को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि “समुद्र तट पर वानरगण किंकर्त्तव्यविमूढ़ हैं। वे मन में विचार कर रहे हैं कि एक मास की अवधि तो व्यतीत हो गई, परन्तु अभी तक सीताजी के बारे में कुछ भी पता नहीं लगा। सब डरे हुए हैं। भयभीत होकर आपस में बातचीत कर रहे हैं कि अब तो सीताजी की खबर लिए बिना लौटकर भी क्या करेंगे? अंगद भावुक होकर नेत्रों में जल भरकर बोले, 'हमारी तो दोनों ही प्रकार से मृत्यु हो गई। यहाँ तो सीताजी की सुध नहीं मिली और वहाँ जाने पर वानरराज सुग्रीव मार डालेंगे। वे तो पिता के वध होने पर ही मुझे मार डालते। श्रीरामजी ने ही मेरी रक्षा की है। अब मरण होने में कोई सन्देह नहीं है।' 

अंगद की बातों को सुनकर वानरगण भी भावुक हो जाते हैं और उनके नेत्रों से भी जलधारा बह चलती है। एक क्षण सोचकर वे कहते हैं कि, 'हे युवराज! हम अब सीताजी की खोज किए बिना नहीं लौटेंगे।' सब यह निर्णय लेकर समुद्र के किनारे कुश बिछाकर बैठ गए और विचार करने लगे। जाम्बवन्त जी ने अंगद सहित वानरगणों की निराशा को दूर करने के उद्देश्य से कहा, 'हे तात! श्रीरामजी को मनुष्य न मानो। उन्हें निर्गुण, ब्रह्म, अजेय और अजन्मा समझो। हम सब सेवक अत्यन्त भाग्यवान हैं कि हमसे सगुण ब्रह्म श्रीराम सदैव प्रीति रखते हैं। देवता, पृथ्वी, गौ और ब्राह्मणों के लिए प्रभु अपनी इच्छा से अवतार लेते हैं। वहाँ सगुणोपासक सब प्रकार के मोक्षों को त्यागकर उनकी सेवा में साथ रहते हैं।'

هذه القصة مأخوذة من طبعة January 2023 من Jyotish Sagar.

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September 2024
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
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जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।

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प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक 'श्रीराधा'
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