जन्मकुंडली में कालपुरुष की जो कल्पना की गई है, उसमें केतु को राहु एवं शनि के समान ही कालपुरुष का दुःख माना गया है। केतु को अंग्रेजी भाषा में 'ड्रेगन्स टेल' और 'डिसेंडिंग नोड'; उर्दू, फारसी और अरबी में ‘जनब' कहते हैं। यह निम्नलिखित का कारक होता है : मोक्ष, शिवोपासना, डॉक्टरी कुत्ता, मुर्गा, ऐश्वर्य, टीबी, पीड़ा, ज्वर, तप, वायुविकार, स्नेह, सम्पत्ति का हस्तान्तरण करने वाला, पत्थर की चोट, काँटा, ब्रह्मज्ञान, आँख का दर्द, अज्ञानता, भाग्य, मौनव्रत, वैराग्य, भूख, उदरशूल, सींगों वाले पशु, ध्वज, शूद्रों की सभा, बन्धन की आज्ञा को रोकना, जमानत आदि का।
जब यह कुंडली में बलवान् होता है, तो उपर्युक्त पदार्थों की प्राप्ति होती है और सम्बन्धित घटनाओं, बीमारियों आदि से रक्षा करता है। यह व्यक्ति के जीवन में 48 से 54वें वर्ष तक विशेष प्रभाव डालता है। केतु ग्रह से प्रभावित व्यक्ति निम्नलिखित व्यवसायों में सफल रहते हैं : जासूसी, औषधि विक्रय, पुरातत्व विभाग, योग विद्या, आविष्कार, संचार विभाग, ड्राइवर, रबड़ उद्योग, चिकित्सा, पर्यटन, कलाकार, अध्यात्म, अनुवादक, धर्म गुरु, भविष्यवक्ता, फिल्म व्यवसाय और कैमिकल इंजीनियरिंग आदि। वे अन्य पदार्थों से सम्बन्धित व्यवसायों से भी लाभ कमा सकते हैं।
केतु को मोक्ष का कारक भी माना जाता है, अतः केतु का शुभ स्थिति में होना या गुरु के साथ होना शुभ फलदायक होता है। उसे इस लोक में आध्यात्मिक सफलता देता है एवं मृत्यु के पश्चात् मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। यदि इसके साथ शनि और बुध ग्रह का लग्न या लग्नेश से , शुभ सम्बन्ध हो, तो विशेष लाभ मिलता है। केतु ग्रह धनु राशि में 15 अंश तक उच्च का, मिथुन राशि में 15 अंश तक नीच का, मकर राशि में मूल त्रिकोण का, मतान्तर से वृषभ राशि में और मीन राशि में स्वराशि का होता है। कुंडली में बारह भावों में से 3, 6, 10 और 11वाँ भाव शुभ, 1, 2, 5, 7 और नौवाँ भाव अरिष्ट कारक और 4, 8, 12वाँ अत्यन्त अरिष्टकारक होता है। यह गोचर में एक राशि पर 18 माह रहता है। इसकी महादशा 7 वर्ष रहती है। यदि केतु अपनी स्वराशि या उच्च राशि में हो. गुरु के साथ स्थित हो या गुरु से समसप्तक हो, तो व्यक्ति को सर्वाधिक प्रगति हैं।
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भाग्यचक्र बिगाड़ता चला गया सारे जीवन का क्रम
आलेख के आरम्भ में हम ज्ञान, विद्या और कर्म के आकलन पर विचार कर लेते हैं। जब मनुष्य आयु में बड़ा होने लगता है, जब वह बूढ़ा अर्थात् बुजुर्ग हो जाता है, क्या तब वह ज्ञानी हो जाता है? क्या बड़ी डिग्रियाँ लेकर ज्ञानी हुआ जा सकता है? मैं ज्ञानवृद्ध होने की बात कर रहा हूँ। यानी तन से वृद्ध नहीं, जो ज्ञान से वृद्ध हो, उसकी बात कर रहा है।
मकर संक्रान्ति एक लोकोत्सव
सूर्य के उत्तरायण में आने से खरमास समाप्त हो जाता है और शुभ कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं। इस प्रकार मकर संक्रान्ति का पर्व भारतीय संस्कृति का ऊर्जा प्रदायक धार्मिक पर्व है।
महाकुम्भ प्रयागराज
[13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक]
रथारूढ़ सूर्य मूर्ति फलक
राजपूताना के कई राजवंश एवं शासक सूर्यभक्त थे और उन्होंने कई देवालयों का निर्माण भी करवाया। इन्हीं के शासनकाल में निर्मित मूर्तियाँ वर्तमान में भी राजस्थान के कई संग्रहालयों में संरक्षित हैं।
अस्त ग्रहों की आध्यात्मिक विवेचना
जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महद्युतिम्। तमोऽरि सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ।।
सूर्य और उनका रत्न माणिक्य
आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।। हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥
नागाओं का अचानक यूँ चले जाना!
नागा साधु किसी समय समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए ही जीते थे, अपने लिए कतई नहीं। महाकुम्भ पर्व के अवसर पर नागा साधुओं को न किसी ने आते हुए देखा और न ही जाते हुए।
नागा साधुओं के श्रृंगार हैं अद्भुत
नागाओं की एक अलग ही रहस्यमय दुनिया होती है। चाहे नागा बनने की प्रक्रिया हो अथवा उनका रहन-सहन, सब-कुछ रहस्यमय होता है। नागा साधुओं को वस्त्र धारण करने की भी अनुमति नहीं होती।
इतिहास के झरोखे से प्रयागराज महाकुम्भ
सितासिते सरिते यत्र संगते तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति। ये वे तन्वं विसृजति धीरास्ते जनासो अमृतत्वं भजन्ते ।।
कैसा रहेगा भारतीय गणतन्त्र के लिए 76वाँ वर्ष?
26 जनवरी, 2025 को भारतीय गणतन्त्र 75 वर्ष पूर्ण कर 76वें वर्ष में प्रवेश करेगा। यह 75वाँ वर्ष भारतीय गणतन्त्र के लिए कैसा रहेगा? आइए ज्योतिषीय आधार पर इसकी चर्चा करते हैं।