यह माना जाता है कि इसकी स्थापना ऋषि-मुनियों ने की है। इसका मूल पूर्णत: वैज्ञानिक होने के कारण सदियाँ बीत जाने के बाद भी इसका महत्त्व कम नहीं हुआ है। आधुनिक काल में जो कमियाँ आज हम देखते हैं, उसका कारण हिन्द धर्म न होकर लोगों में संवेदनशीलता की कमी और नैतिक पतन है। त्याग भावना की कमी और स्वार्थ भावना की अधिकता के चलते आज कुछ कमियाँ हम अपने आसपास देख सकते हैं।
प्रारम्भिक काल में हिन्दू समाज गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के अनुसार में शिक्षा दी जाती थी, जो वैज्ञानिक होने के कारण विकासोन्मुख थी। सोलह संस्कारों को हिन्दू धर्म की जड़ कहें, तो गलत नहीं होगा। इन्हीं सोलह संस्कारों में इस धर्म की संस्कृति और परम्पराएँ निहित हैं। सनातन धर्म के ये सोलह संस्कार इस प्रकार हैं:
1. गर्भाधान संस्कार,
2. पुंसवन संस्कार,
3. सीमन्तोन्नयन संस्कार,
4. जातकर्म संस्कार,
5. नामकरण संस्कार,
6. निष्क्रमण संस्कार,
7. अन्नप्राशन संस्कार,
8. चूड़ाकर्म संस्कार,
9. विद्यारम्भ संस्कार,
10. कर्णवेध संस्कार,
11. यज्ञोपवीत संस्कार,
12. वेदारम्भ संस्कार,
13. केशान्त संस्कार,
14. समावर्तन संस्कार,
15. विवाह संस्कार एवं
16. अंत्येष्टि संस्कार।
1. गर्भाधान संस्कार: गर्भाधान संस्कार के माध्यम से हिन्दू धर्म यह सन्देश देता है कि स्त्री-पुरुष सम्बन्ध पशुवत् न होकर केवल वंशवृद्धि हेतु होना चाहिए। मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ होने, मन प्रसन्न होने पर गर्भधारण करने से सन्तति स्वस्थ और बुद्धिमान् होती है। चिकित्सीय विज्ञान भी आज इसकी पुष्टि करता है।
2. पुंसवन संस्कार: गर्भ धारण के तीन माह बाद गर्भ में जीव के संरक्षण और विकास हेतु यह आवश्यक है कि स्त्री अपने खान-पान और जीवनशैली को नियमानुसार करें। यह संस्कार यही स्पष्ट करता है। इस संस्कार का उद्देश्य स्वस्थ और उत्तम सन्तति की प्राप्ति है। यह तभी सम्भव है जब गर्भधारण विशेष तिथि और ग्रहों के आधार पर किया जाए।
هذه القصة مأخوذة من طبعة May 2023 من Jyotish Sagar.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك ? تسجيل الدخول
هذه القصة مأخوذة من طبعة May 2023 من Jyotish Sagar.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك? تسجيل الدخول
सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
गया हिन्दुओं का पवित्र और प्रधान तीर्थ है। मान्यता है कि यहाँ श्रद्धा और पिण्डदान करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है, क्योंकि यह सात धामों में से एक धाम है। गया में सभी जगह तीर्थ विराजमान हैं।
सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।
श्रीगणेश नाम रहस्य
हिन्दुओं के पंच परमेश्वर में भगवान् गणेश का स्थान प्रथम माना जाता है। शंकराचार्य जी ने के भी पंचायतन पूजा में गणेश पूजन विधान का उल्लेख किया है। गणेश से तात्पर्य गण + ईश अर्थात् गणों का ईश से है। भगवान् गणेश को कई अन्य नामों से भी पूजा जाता है जैसे विघ्न विनाशक, विनायक, लम्बोदर, सिद्धि विनायक आदि।
प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक 'श्रीराधा'
कृष्ण चरित के प्रतिनिधि शास्त्र भागवत और महाभारत में राधा का उल्लेख नहीं होने के बावजूद वे लोकमानस में प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक के रूप में बसी हुई हैं। सन्त महात्माओं ने उन्हें कृष्णचरित का अभिन्न अंग माना है। उनकी मान्यता है कि प्रेम और भक्ति की जैसे कोई सीमा नहीं है, उसी तरह राधा का चरित, उनकी लीला और स्वरूप भी प्रेमाभक्ति का चरमोत्कर्ष है।
राजस्थान के लोकदेवता और समाज सुधारक बाबा रामदेव
राजस्थान के देवी-देवताओं में बाबा रामदेव का नाम काफी विख्यात है। इनके अनुयायी राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और सिन्ध (पाकिस्तान) आदि में बड़ी संख्या में हैं।
जन्मपत्रिका में चन्द्रमा और मनुष्य का भावनात्मक जुड़ाव
जिस प्रकार लग्न हमारा शरीर अर्थात् बाहरी व्यक्तित्व है, उसी प्रकार चन्द्रमा हमारा सूक्ष्म व्यक्तित्व है, जो किसी को भी दिखाई नहीं देता, लेकिन महसूस अवश्य होता है।