इनके पिता गंगाधर राव स्थानीय पाठशाला में शिक्षक थे। वे संस्कृत एवं मराठी भाषा के अच्छे विद्वान् थे। माता भी सात्विक प्रवृत्ति की महिला थीं। पुत्र प्राप्ति के लिए माता ने सूर्यदेव की आराधना की थी। तिलक का जन्म नाम 'केशव' था, लेकिन सभी प्यार से उन्हें 'बाल' कहते थे। आगे चलकर वे इसी नाम से प्रसिद्ध हुए।
बाल्यकाल एवं अध्ययन
तिलक बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। उनके पिता ने उन्हें संस्कृत एव मराठी भाषा में पढ़ाई करवाई थी। गणित के किसी भी जटिल प्रश्न को वे मौखिक ही हल कर देते थे। सन् 1866 में जब वे दस वर्ष के थे, तभी उनकी माता पार्वती बाई का देहान्त हो गया था। पिता का स्थानान्तरण भी पूना नगर में हो गया था। तदनन्तर इन्हें पूना की ही एक पाठशाला में भर्ती करवाया गया। बचपन से ही ये तर्क-वितर्क करने की विद्या में पारंगत थे, जिसके कारण इन्हें कई बार अपने गुरुजनों के कोप का भी शिकार होना पड़ा। एक दिन कक्षा के विषयाध्यापक ने कई प्रश्न इन्हें हल करने को दे दिए। थोड़ी ही देर में प्रश्न हल कर तिलक ने अध्यापक महोदय के सामने रख दिए। सभी प्रश्नों के उत्तर सही थे, पर प्रश्नों की विधि नहीं लिखी थी। अध्यापक ने पूछा, 'तुमने विधि (क्रिया) कहाँ की है?”
‘यहाँ!’ बाल गंगाधर ने अपने माथे पर अँगुली रखकर कहा। प्रारम्भिक शिक्षा पूरी कर तिलक ने कॉलेज में प्रवेश लिया। कॉलेज में अंग्रेजी शिक्षा का बड़ा प्रभाव था, पर बाल गंगाधर तिलक ने अपनी भारतीय पोशाक को नहीं छोड़ा। कॉलेज में भी रेशमी धोती, सिर पर गोल पगड़ी लाल रंग की, पाँवों में देशी जूते, लम्बा-सा अंगरखा और कन्धे पर सफेद-सा दुपट्टा। जीवनपर्यन्त उनका यही परिधान रहा।
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भाग्यचक्र बिगाड़ता चला गया सारे जीवन का क्रम
आलेख के आरम्भ में हम ज्ञान, विद्या और कर्म के आकलन पर विचार कर लेते हैं। जब मनुष्य आयु में बड़ा होने लगता है, जब वह बूढ़ा अर्थात् बुजुर्ग हो जाता है, क्या तब वह ज्ञानी हो जाता है? क्या बड़ी डिग्रियाँ लेकर ज्ञानी हुआ जा सकता है? मैं ज्ञानवृद्ध होने की बात कर रहा हूँ। यानी तन से वृद्ध नहीं, जो ज्ञान से वृद्ध हो, उसकी बात कर रहा है।
मकर संक्रान्ति एक लोकोत्सव
सूर्य के उत्तरायण में आने से खरमास समाप्त हो जाता है और शुभ कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं। इस प्रकार मकर संक्रान्ति का पर्व भारतीय संस्कृति का ऊर्जा प्रदायक धार्मिक पर्व है।
महाकुम्भ प्रयागराज
[13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक]
रथारूढ़ सूर्य मूर्ति फलक
राजपूताना के कई राजवंश एवं शासक सूर्यभक्त थे और उन्होंने कई देवालयों का निर्माण भी करवाया। इन्हीं के शासनकाल में निर्मित मूर्तियाँ वर्तमान में भी राजस्थान के कई संग्रहालयों में संरक्षित हैं।
अस्त ग्रहों की आध्यात्मिक विवेचना
जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महद्युतिम्। तमोऽरि सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ।।
सूर्य और उनका रत्न माणिक्य
आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।। हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥
नागाओं का अचानक यूँ चले जाना!
नागा साधु किसी समय समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए ही जीते थे, अपने लिए कतई नहीं। महाकुम्भ पर्व के अवसर पर नागा साधुओं को न किसी ने आते हुए देखा और न ही जाते हुए।
नागा साधुओं के श्रृंगार हैं अद्भुत
नागाओं की एक अलग ही रहस्यमय दुनिया होती है। चाहे नागा बनने की प्रक्रिया हो अथवा उनका रहन-सहन, सब-कुछ रहस्यमय होता है। नागा साधुओं को वस्त्र धारण करने की भी अनुमति नहीं होती।
इतिहास के झरोखे से प्रयागराज महाकुम्भ
सितासिते सरिते यत्र संगते तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति। ये वे तन्वं विसृजति धीरास्ते जनासो अमृतत्वं भजन्ते ।।
कैसा रहेगा भारतीय गणतन्त्र के लिए 76वाँ वर्ष?
26 जनवरी, 2025 को भारतीय गणतन्त्र 75 वर्ष पूर्ण कर 76वें वर्ष में प्रवेश करेगा। यह 75वाँ वर्ष भारतीय गणतन्त्र के लिए कैसा रहेगा? आइए ज्योतिषीय आधार पर इसकी चर्चा करते हैं।