तुलसीदासजी की जन्मपत्रिका!
Jyotish Sagar|August 2023
हाल ही में तुलसीदासजी की एक जन्मपत्रिका संज्ञान में आई, जो कि तुला लग्न की थी, जिसमें लग्न में शनि-गुरु, मकर का राहु, मिथुन का चन्द्रमा, कर्क का सूर्य, मंगल और केतु, सिंह का बुध तथा कन्या का शुक्र था।
अवनीश पाण्डेय
तुलसीदासजी की जन्मपत्रिका!

जन्म विवरण निम्नानुसार दिया गया था: 

उक्त जन्मविवरण के आधार पर बनाई गई जन्मपत्रिका में सूर्य, चन्द्रमा में अन्तर दिखाई देता है। हालाँकि तिथि श्रावण शुक्ल सप्तमी है, परन्तु ई. सन् 1543 तथा जन्म समय का स्रोत लेखक दण्डपाणि पाण्डा ने नहीं दिया है।

सम्भवत: विल्सन के आधार पर जन्मविवरण विक्रम संवत् 1600 मानते हुए लेखक दण्डपाणि पाण्डा ने अथवा उन्होंने जिस स्रोत से यह जन्मपत्रिका दी है. उन्होंने श्रावण शुक्ल सप्तमी के आधार पर गणना से जन्मतिथि का निर्धारण किया होगा और जन्म समय लग्न में गुरु की स्थिति को रखते हुए बना दिया गया प्रतीत होता है। विद्वानों ने विल्सन के विक्रम संवत् 1600 के तुलसीदासजी के जन्म के मत का खण्डन किया है। इसलिए इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। वहीं, दूसरी ओर यह सर्वविदित है कि तुलसीदासजी का जन्म मूलसंज्ञक नक्षत्र में हुआ था, जिसके चलते पिता ने उनका त्याग कर दिया था, परन्तु यहाँ जन्मनक्षत्र चित्रा है।

इंटरनेट पर एक ब्लॉग में तुलसीदासजी का एक और जन्म विवरण मिलता है, जिसमें उनका जन्म श्रावण शुक्ल सप्तमी विक्रम संवत् 1554 को परिगणित करते हुए 06 जुलाई, 1497 प्रात: 11:52 बजे राजापुर निर्धारित किया है। तदनुसार जन्मपत्रिका तुला लग्न एवं तुला नवांश की निर्मित होती है।

इस जन्म विवरण और उसके आधार पर निर्मित जन्मपत्रिका को स्वीकार करने में निम्नलिखित कठिनाइयाँ हैं :

1. यहाँ चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र एवं कन्या राशि में है, जबकि सुप्रचलित जनश्रुति के अनुसार तुलसीदासजी का जन्म मूलसंज्ञक नक्षत्र में हुआ था।

2. ब्लॉग लेखक ने जन्म विवरण का स्रोत नहीं दिया। जहाँ तक विक्रम संवत् 1554 का प्रश्न है, तो यह मूलत: वेणीमाधव गोस्वामी के मूलगोसाई चरित में प्रतिपादित है। उसी में ही श्रावण शुक्ल सप्तमी का उल्लेख मिलता है, जैसाकि आगे देखेंगे कि वेणी माधव गोस्वामी ने जन्म विवरण के साथ-साथ ग्रहस्थिति का भी वर्णन किया है, उसका विक्रम संवत् 1554 की ग्रहस्थिति से कोई मेल नहीं है।

3. वि.सं. 1554 में श्रावण अधिक मास है। ऐसी स्थिति में शुक्लपक्ष सप्तमी अधिक मास की है या शुद्ध मास की, यह भी स्पष्ट नहीं है।

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