शिवोपासना की महिमा
Jyotish Sagar|March 2024
सृष्टि के प्रारम्भ में फाल्गुन त्रयोदशी (कृष्ण पक्ष की) तिथि को मध्यरात्रि में भगवान् शिव का ब्रह्मा से रूद्र के रूप में अवतरण हुआ था। शिवरात्रि के दिन व्रत एवं उपवास रखकर शिवलिंग पर बिल्वपत्र अर्पित करने चाहिए।
डॉ. श्याम मनोहर व्यास
शिवोपासना की महिमा

शिव अनादि एवं अजन्मा देवता माने गए हैं। वे अज, अमर और अनन्त देव हैं। शिवोपासना भारतीय संस्कृति और आस्था का प्रमुख प्रेरणा स्रोत रही है। भगवान् श्रीकृष्ण ने भी गीता में ‘रुद्राणां शंकरास्मि' अर्थात् 'शंकर' अथवा 'रुद्र' भी मैं हूँ, कहा है। शिव शक्ति का ही आदि रूप है।

शिव अपने भक्तों पर शीघ्र ही कृपा करते हैं। इसलिए उन्हें 'आशुतोष' कहा गया है अर्थात् 'शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता'। भगवान् शंकर सुर और असुर दोनों के उपास्य हैं। जो भी उनकी भक्ति करता है, उसे वे निष्काम भाव से वरदान देते हैं। शिव कोई भी भेदभाव नहीं करते हैं। शिव के अनेक स्वरूप हैं। अनन्त नाम हैं, अनन्त चरित हैं। अनन्त आख्यान हैं। वे कुन्द गौर शिव हैं। वे नील लोहित रुद्र हैं। वे प्रलंयकर महाकाल हैं। जहाँ शिव कल्याणकारी देवता हैं, वहाँ नाराज होने पर रुद्र का रूप भी धारण कर लेते हैं।

शिवपुराण, स्कन्द पुराण, लिंग पुराण, गणेश पुराण, अग्नि पुराण आदि पौराणिक ग्रन्थों में शिव की महिमा, गुणगान और आख्यानों का विस्तृत उल्लेख हुआ है। महाशिवरात्रि को भगवान् शिव का प्राकट्य हुआ था। देश के ग्राम-ग्राम, नगर-नगर में शिवालय हैं। शिवोपासना अथवा लिंगोपासना श्रुति, स्मृति, पुराण से प्रतिपादित हैं। 'शिवोऽहम्' यह पंचाक्षर मन्त्र भगवान् शिव का प्रतीक रहा है। शिवजी समाधिस्थ देव हैं। सदैव चिरन्तक रूप में ध्यान में मग्न रहते हैं, अतः शिव भक्तों को भी सामान्य शिव मन्त्रों का जप करके शिवोपासना में अपना ध्यान लगाना चाहिए। 'ॐ नमः शिवाय' एवं 'ॐ रुद्राय नम:' सामान्य मन्त्र हैं। 'ॐ' प्रणवाक्षर है। इसमें सम्पूर्ण सृष्टि का ज्ञान समाहित है। 'ॐ' का सन्धिविच्छेद है: ॐ = अ + उ + म। इसमें तीन अक्षरों ब्रह्मा, विष्णु और महेश की स्तुति निहित है।

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बारहवाँ भाव : मोक्ष अथवा भोग
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बारहवाँ भाव : मोक्ष अथवा भोग

किसी भी जन्मपत्रिका के चतुर्थ, अष्टम और द्वादश भाव को 'मोक्ष त्रिकोण भाव' कहा जाता है, जिसमें से बारहवाँ भाव 'सर्वोच्च मोक्ष भाव' कहलाता है। लग्न से कोई आत्मा शरीर धारण करके पृथ्वी पर अपना नया जीवन प्रारम्भ करती है तथा बारहवें भाव से वही आत्मा शरीर का त्याग करके इस जीवन के समाप्ति की सूचना देती है अर्थात् इस भाव से ही आत्मा शरीर के बन्धन से मुक्त हो जाती है और अनन्त की ओर अग्रसर हो जाती है।

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December-2024
रामजन्मभूमि अयोध्या
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रात के सप्तमोक्षदायी पुरियों में से एक अयोध्या को ब्रह्मा के पुत्र मनु ने बसाया था। वसिष्ठ ऋषि अयोध्या में सरयू नदी को लेकर आए थे। अयोध्या में काफी संख्या में घाट और मन्दिर बने हुए हैं। कार्तिक मास में अयोध्या में स्नान करना मोक्षदायी माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहाँ भक्त आकर सरयू नदी में डुबकी लगाते हैं।

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जीवन प्रबन्धन का अनुपम ग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता
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यह सर्वविदित है कि महाभारत के युद्ध में ही श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था। यह उपदेश मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी (11 दिसम्बर) को प्रदत्त किया गया था। महाभारत के युद्ध से पूर्व पाण्डव और कौरवों की ओर से भगवान् श्रीकृष्ण से सहायतार्थ अर्जुन और दुर्योधन दोनों ही गए थे, क्योंकि श्रीकृष्ण शक्तिशाली राज्य के स्वामी भी थे और स्वयं भी सामर्थ्यशाली थे।

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तरक्की के द्वार खोलता है पुष्कर नवांशस्थ ग्रह
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सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
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सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
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September 2024
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
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जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।

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