![जब नारद जी ने दिया श्रीहरि को शाप! जब नारद जी ने दिया श्रीहरि को शाप!](https://cdn.magzter.com/1382621400/1714107728/articles/RxIyM2oUN1714473623575/1714473940055.jpg)
रामचरितमानस में त्रेतायुग की अलग-अलग कथाएँ बताई गई हैं। इन कथाओं को भगवान् शिव माता पार्वती जी को, काकभुशुण्ड जी गरुड़ जी को, याज्ञवल्क्य मुनि भरद्वाज और तुलसीदास जी हम सभी को कथा सुना रहे हैं। इन्हीं कथाओं में से एक कथा है नारद जी के अभिमान (अहंकार) की कथा, जिसके बारे में भगवान् शिव माता पार्वती जी को बताते हैं।
एक बार भगवान् शिव माता पार्वती से कहते हैं, "एक कल्प में जब नारद जी ने श्रीहरि को शाप दे दिया था, तब उस त्रेतायुग में भी भगवान् ने मनुष्य रूप में अवतार लिया था।" यह बात सुनकर पार्वतीजी आश्चर्यचकित हुईं और बोलीं कि 'नारदजी तो भगवान् विष्णु भक्त हैं, फिर उन्हें अहंकार कैसे, और अहंकार भी इतना कि श्रीहरि को ही शाप दे दिया? यह तो बड़े आश्चर्य की बात है। इसलिए हे प्रभु! यह कथा मुझसे कहिए न कि नारद मुनि ने भगवान् को किस कारण से शाप दिया?"
तब भगवान् शिव हँसते हुए कथा कहते हैं। हिमालय पर्वत में एक पवित्र गुफा के समीप गंगाजी बहती थीं। वह स्थान नारद के मन को बड़ा भाया। पर्वत, नदी और वन की सुन्दरता को देखकर नादरजी का भगवान् के चरणों में प्रेम और भी बढ़ गया और वहीं बैठकर श्रीहरि का स्मरण करते हुए समाधि लगाकर तप करने लगे। नारद जी की तपस्या को देखकर देवराज इन्द्र घबरा गए, क्योंकि स्वभाव के अनुसार उन्हें लगा कि कहीं नारद जी भी मेरा राज्य पाने के लिए ही तो तप नहीं कर रहे हैं।
तब इन्द्रदेव ने कामदेव और कई अप्सराओं को नारद जी की तपस्या भंग करने के लिए भेज दिया। कामदेव और अप्सराओं ने नारद मुनि के सामने हर प्रकार के मायाजाल बिछाए, लेकिन उनकी कोई भी कला नारद पर असर नहीं कर सकी। यह देखकर कामदेव अत्यन्त भयभीत हो गए। उन्हें अपने ही नाश का डर सताने लगा। तब उन्होंने और सभी अप्सराओं ने नारद जी के चरणों में प्रणाम कर क्षमा माँगी और वहाँ से लौट गए। यह देखकर नारदजी के मन में भी कोई क्रोध नहीं आया। यह सब देख सुनकर इन्द्रदेव ने भी नारद जी की प्रशंसा की।
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![केकड़ी के अष्टमुखी शिवलिंग केकड़ी के अष्टमुखी शिवलिंग](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1976974/SuR0wj8HF1738759486501/1738759610756.jpg)
केकड़ी के अष्टमुखी शिवलिंग
शिवलिंग का वृत्ताकार ऊर्ध्वभाग ब्रह्माण्ड का द्योतक माना जाता है। इस मन्दिर में पशुपतिनाथ के साथ उनके परिवार (शिव परिवार) की सुन्दर एवं वृहद् प्रतिमाओं को भी स्थापित किया गया है।
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मिथुन लग्न के नवम भाव में स्थित - गुरु एवं शुक्र के फल
प्रस्तुत लेखमाला \"कैसे करें सटीक फलादेश?\" के अन्तर्गत मिथुन लग्न के नवम भाव में स्थित सूर्यादि नवग्रहों के फलों का विवेचन किया जा रहा है, जिसमें अभी तक सूर्य से बुध तक के फलों का विवेचन किया जा चुका है। उसी क्रम में प्रस्तुत आलेख में गुरु एवं शुक्र के नवम भाव में राशिगत, भावगत, नक्षत्रगत, युतिजन्य व दृष्टिजन्य फलों का विवेचन कर रहे हैं।
![उत्तर दिशा का महत्त्व और उसके गुण-दोष उत्तर दिशा का महत्त्व और उसके गुण-दोष](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1976974/mOmP8ZTNZ1738757679180/1738758947805.jpg)
उत्तर दिशा का महत्त्व और उसके गुण-दोष
उत्तर दिशा के ऊँचा होने या उत्तर दिशा में किसी भी प्रकार का वजन होने पर अथवा वहाँ पर पृथ्वी तत्त्व आने पर जलतत्त्व की खराबी हो जाती है।
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इतिहास के झरोखे से प्रयागराज महाकुम्भ
इटली का निकोलाई मनुची 1656 से 1717 में अपनी मृत्यु पर्यन्त भारत में ही रहा और मुगलों सहित विभिन्न सेनाओं में सेनानायक के रूप में रहा।
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'कश्मीर' पूर्व में था 'कश्यपमीर'!
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में दिल्ली में एक किताब के विमोचन कार्यक्रम में कहा था कि 'कश्मीर' को 'कश्यप की भूमि' के नाम से जाना जाता है।
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क्यों सफल नहीं हो पा रही है गुजरात की 'गिफ्ट सिटी' एक वास्तु विश्लेषण
गिफ्ट सिटी की प्लानिंग इस प्रकार की गई है कि साबरमती नदी इसकी पश्चिम दिशा में है। यदि इसके विपरीत गिफ्ट सिटी की प्लानिंग साबरमती नदी के दूसरी ओर की गई होती, तो गिफ्ट सिटी की पूर्व दिशा में आ जाती।
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त्रिक भाव रहस्य - षष्ठ भाव और अभिवृद्धि
षष्ठ भाव एक ओर तो हमें विभिन्न प्रकार के रोगों और शत्रुओं से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है, वहीं दूसरी ओर ऋण अर्थात् कर्ज के लेन-देन के विषय में ताकतवर बनाता है।
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लोककल्याणकारी देवता शिव
देवाधिदेव शिव लोककल्याणकारी देवता हैं। शिव अनादि एवं अनन्त हैं। शिव शक्ति का ही आदिरूप त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश में शिव को जहाँ संहार देवता माना है, वहाँ उनका आशुतोष रूप है अर्थात् शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव।
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प्रयागराज महाकुम्भ का शुभारम्भ - रिकॉर्ड संख्या में श्रद्धालुओं ने किया संगम स्नान
प्रयागराज महाकुम्भ, 2025 ने 13 जनवरी (पौष पूर्णिमा) को अपने शुभारम्भ से ही एक नए इतिहास की रचना की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। यह महाकुम्भ अपने प्रत्येक आयोजन में नया इतिहास रचता है।
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रात्रि जागरण एवं चार प्रहर पूजा - 26 फरवरी, 2025 (बुधवार)
नकेवल शैव धर्मावलम्बियों के लिए, वरन् समस्त सनातनधर्मियों के लिए 'महाशिवरात्रि' एक बड़ा पर्व है। इस पर्व के तीन स्तम्भ हैं: 1. उपवास, 2. रात्रि जागरण, 3. भगवान् शिव का पूजन एवं अभिषेक।