हम सभी आकाश देख पाते हैं और तो क्या, छोटे कीड़े भूमि पर घूमते-फिरते हैं, वे भी ऊपर की ओर देखने पर नीले वर्ण के आकाश को देखते हैं, किन्तु वह हमारे पास से कितनी दूर स्थित हैं? बोलो तो! इच्छा करने पर तो मन सभी जगह जा सकता है, किन्तु इस शरीर को प्रयत्न करके चलना सीखने में ही कितना समय बीत जाता है? हमारे सभी आदर्शों के सम्बन्ध में भी यही बात में आदर्श हमसे बहुत दूर और हम उनसे बहुत नीचे पड़े हुए हैं, तथापि हम जानते हैं कि हमें एक आदर्श मानकर रखना जरूरी है। इतना ही नहीं हमें सर्वोच्च आदर्श रखना आवश्यक है।
अधिकांश व्यक्ति इस संसार में कोई आदर्श लिए बिना ही जीवन के इस अन्धकारमय पथ पर भटकते फिरते हैं। जिनका एक निश्चित आदर्श है, वह यदि 1000 भूलों में पड़ सकता है, तो जिनका कोई भी आदर्श नहीं, वह 10,000 भूलों में पड़ सकता है और निश्चय ही वह 10,000 भूल करेगा। अतएव एक आदर्श रखना ही अच्छा है और यदि वह आदर्श उस आत्मा के सम्बन्ध में है, तो उसको प्राप्ति निश्चित समय पर ही होगी और आदर्श के सम्बन्ध में जितना हो सके, सुनना होगा। उतने दिन सुनना होगा, जितने दिन वह हमारे अन्तस् में प्रवेश नहीं करता, हमारे मस्तिष्क में प्रवेश नहीं करता, जब तक वह हमारे रक्त में प्रवेश नहीं करता और जब वह प्रवेश कर लेगा, जब उसे जानने पर एक असीम आनन्द की प्राप्ति होगी, वही प्रत्येक मनुष्य का लक्ष्य बिन्दु है और जो पृथ्वी के जीवनकाल में उसे जान लेता है, वही मनुष्य वह सब कुछ पा जाता है, जिसे ब्रह्मतत्त्व कहा गया है। इसलिए उपनिषद् में कहा गया है कि इस मृत्युलोक पर जो कुछ है, वह आत्मा ही है, जो ध्यान करने योग्य है, मनन करने योग्य है, सुनने योग्य है और चर्चा करने योग्य है।
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भाग्यचक्र बिगाड़ता चला गया सारे जीवन का क्रम
आलेख के आरम्भ में हम ज्ञान, विद्या और कर्म के आकलन पर विचार कर लेते हैं। जब मनुष्य आयु में बड़ा होने लगता है, जब वह बूढ़ा अर्थात् बुजुर्ग हो जाता है, क्या तब वह ज्ञानी हो जाता है? क्या बड़ी डिग्रियाँ लेकर ज्ञानी हुआ जा सकता है? मैं ज्ञानवृद्ध होने की बात कर रहा हूँ। यानी तन से वृद्ध नहीं, जो ज्ञान से वृद्ध हो, उसकी बात कर रहा है।
मकर संक्रान्ति एक लोकोत्सव
सूर्य के उत्तरायण में आने से खरमास समाप्त हो जाता है और शुभ कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं। इस प्रकार मकर संक्रान्ति का पर्व भारतीय संस्कृति का ऊर्जा प्रदायक धार्मिक पर्व है।
महाकुम्भ प्रयागराज
[13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक]
रथारूढ़ सूर्य मूर्ति फलक
राजपूताना के कई राजवंश एवं शासक सूर्यभक्त थे और उन्होंने कई देवालयों का निर्माण भी करवाया। इन्हीं के शासनकाल में निर्मित मूर्तियाँ वर्तमान में भी राजस्थान के कई संग्रहालयों में संरक्षित हैं।
अस्त ग्रहों की आध्यात्मिक विवेचना
जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महद्युतिम्। तमोऽरि सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ।।
सूर्य और उनका रत्न माणिक्य
आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।। हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥
नागाओं का अचानक यूँ चले जाना!
नागा साधु किसी समय समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए ही जीते थे, अपने लिए कतई नहीं। महाकुम्भ पर्व के अवसर पर नागा साधुओं को न किसी ने आते हुए देखा और न ही जाते हुए।
नागा साधुओं के श्रृंगार हैं अद्भुत
नागाओं की एक अलग ही रहस्यमय दुनिया होती है। चाहे नागा बनने की प्रक्रिया हो अथवा उनका रहन-सहन, सब-कुछ रहस्यमय होता है। नागा साधुओं को वस्त्र धारण करने की भी अनुमति नहीं होती।
इतिहास के झरोखे से प्रयागराज महाकुम्भ
सितासिते सरिते यत्र संगते तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति। ये वे तन्वं विसृजति धीरास्ते जनासो अमृतत्वं भजन्ते ।।
कैसा रहेगा भारतीय गणतन्त्र के लिए 76वाँ वर्ष?
26 जनवरी, 2025 को भारतीय गणतन्त्र 75 वर्ष पूर्ण कर 76वें वर्ष में प्रवेश करेगा। यह 75वाँ वर्ष भारतीय गणतन्त्र के लिए कैसा रहेगा? आइए ज्योतिषीय आधार पर इसकी चर्चा करते हैं।