पूर्व वैदिक काल से ही गणेश पूजन की परम्परा रही है। कोई भी शुभ एवं पवित्र कार्य प्रारम्भ करने पर श्रीगणेश पूजन किया जाता है, अतः गणेश पूजन प्रथम है। इसका एक कारण यह भी है कि भगवान् गणेश को जिस प्रकार विघ्न विनाशक माना गया है, वैसे ही विघ्नेश्वर भी हैं। देवताओं में गणेश का स्थान प्रथम है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भी भगवान् गणेश बुद्धि, शुभता और विघ्न-बाधाओं को दूर करने वाले देव हैं। गणेश की आराधना करने से जीवन में सकारात्मकता बनी रहती है। व्यक्ति के जीवन में आने वाली समस्त बाधाएँ दूर होती हैं। गणेश जी के पिता शिवजी और माता देवी पार्वती हैं। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी का जन्म हुआ था। यह पर्व गणेश चतुर्थी को भारत ही नहीं, वरन् विश्व के अनेक देशों में हिन्दुओं द्वारा उल्लासपूर्वक मनाया जाता है। स्कन्दपुराण के अनुसार —
गणनायक करिवरवदन एव भाद्रचतुर्थ्यास अवतीर्णो गजाननः ।
(स्कन्दपुराण, गणेश खण्ड अध्याय-1)
इस दिन सिद्धि विनायक व्रत भी रखा जाता है। महाराष्ट्र राज्य में यह पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। दस दिनों तक निरन्तर पूजा - अर्चना के पश्चात गणेश विसर्जन का कार्यक्रम होता है। एक दो नहीं वरन् सैकड़ों गणेश प्रतिमाएँ जल में विसर्जित की जाती हैं। स्त्री-पुरुष, बाल, वृद्ध सभी आनन्दित होकर यह नारा लगाते हैं-
गणपती बाप्पा मोरया, पुढच्या वर्षी लवकर या ।
अर्थात् हे गणेश! अगले वर्ष तुम शीघ्र आना। हिन्दू धर्म के अनुसार चतुर्थी तिथि का बड़ा महत्त्व है। पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह में शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष में पड़ने वाली दोनों ही चतुर्थी तिथि को भगवान् गणेश की पूजा के लिए शुभ मानी गई हैं।
बुधवार का महत्त्व
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भाग्यचक्र बिगाड़ता चला गया सारे जीवन का क्रम
आलेख के आरम्भ में हम ज्ञान, विद्या और कर्म के आकलन पर विचार कर लेते हैं। जब मनुष्य आयु में बड़ा होने लगता है, जब वह बूढ़ा अर्थात् बुजुर्ग हो जाता है, क्या तब वह ज्ञानी हो जाता है? क्या बड़ी डिग्रियाँ लेकर ज्ञानी हुआ जा सकता है? मैं ज्ञानवृद्ध होने की बात कर रहा हूँ। यानी तन से वृद्ध नहीं, जो ज्ञान से वृद्ध हो, उसकी बात कर रहा है।
मकर संक्रान्ति एक लोकोत्सव
सूर्य के उत्तरायण में आने से खरमास समाप्त हो जाता है और शुभ कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं। इस प्रकार मकर संक्रान्ति का पर्व भारतीय संस्कृति का ऊर्जा प्रदायक धार्मिक पर्व है।
महाकुम्भ प्रयागराज
[13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक]
रथारूढ़ सूर्य मूर्ति फलक
राजपूताना के कई राजवंश एवं शासक सूर्यभक्त थे और उन्होंने कई देवालयों का निर्माण भी करवाया। इन्हीं के शासनकाल में निर्मित मूर्तियाँ वर्तमान में भी राजस्थान के कई संग्रहालयों में संरक्षित हैं।
अस्त ग्रहों की आध्यात्मिक विवेचना
जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महद्युतिम्। तमोऽरि सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ।।
सूर्य और उनका रत्न माणिक्य
आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।। हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥
नागाओं का अचानक यूँ चले जाना!
नागा साधु किसी समय समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए ही जीते थे, अपने लिए कतई नहीं। महाकुम्भ पर्व के अवसर पर नागा साधुओं को न किसी ने आते हुए देखा और न ही जाते हुए।
नागा साधुओं के श्रृंगार हैं अद्भुत
नागाओं की एक अलग ही रहस्यमय दुनिया होती है। चाहे नागा बनने की प्रक्रिया हो अथवा उनका रहन-सहन, सब-कुछ रहस्यमय होता है। नागा साधुओं को वस्त्र धारण करने की भी अनुमति नहीं होती।
इतिहास के झरोखे से प्रयागराज महाकुम्भ
सितासिते सरिते यत्र संगते तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति। ये वे तन्वं विसृजति धीरास्ते जनासो अमृतत्वं भजन्ते ।।
कैसा रहेगा भारतीय गणतन्त्र के लिए 76वाँ वर्ष?
26 जनवरी, 2025 को भारतीय गणतन्त्र 75 वर्ष पूर्ण कर 76वें वर्ष में प्रवेश करेगा। यह 75वाँ वर्ष भारतीय गणतन्त्र के लिए कैसा रहेगा? आइए ज्योतिषीय आधार पर इसकी चर्चा करते हैं।