जीवनयात्रा में कुछ लोग अशुभ अर्थात् गलत रास्ता कॅरिअर में अपनाते हैं, तो कुछ लोग शुभ अर्थात् सही रास्ता कॅरिअर में अपनाते हैं और इससे ही निर्मित होता है हमारा 'कर्मा' | ईश्वर आपको माफ कर दे, लेकिन कर्मा का माफ करना बेहद कठिन और लगभग असम्भवसा है, क्योंकि यह 'कर्मा' आपने ही अपने कर्मों के द्वारा लगातार श्रृंखला से निर्मित किया है और यही कर्मा आपको हमें विभिन्न जन्मों में विभिन्न योनियों में पैदा करवाकर कर्म करवाता है, जीवन व्यतीत करवाता है, ठीक वैसा, जैसा कि कर्मा चाहता है। अब प्रश्न यह भी आता है कि ऐसा क्या धारण किया जाए, जिससे कर्मा सकारात्मक होकर सुफल प्रदान करे और अशुभ नष्ट हो जाए। तब दर्शनशास्त्र कहता है कि-
धारयति इति धर्मः ।
अर्थात् धारण करने के योग्य कुछ है, तो वह धर्म ही है। यानि अप कर्त्तव्य, अपने शपथों को उचित हो, उसी प्रकार से कटना और जो अपने लिए अच्छा हो, वैसा ही अच्छा दूसरों के लिए विचार करना। तभी तो धर्म धारण करने से दस लक्षण पैदा स्वतः ही हो जाते हैं। ये दस लक्षण हैं-
धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचामिन्द्रियानिग्रहः ।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ॥
अर्थात् धैर्य, क्षमा (दूसरों के अवगुणों, अपराधों को माफ कर देना, क्षमाशील होना), दम (अपनी वासनाओं पर नियन्त्रण करना), अस्तेय (चोरी नहीं करना), शौच (अन्तरंग और बाह्य शुचिता), इन्द्रिय निग्रह (इन्द्रियों को वश में रखना), धी (बुद्धिमत्ता का प्रयोग), विद्या (अधिक से अधिक ज्ञान की पिपासा), सत्य (मन, कर्म और वचन से अपने कर्त्तव्य का पालन करना), अक्रोध (क्रोध नहीं करना) ये दस धर्मात्मा के लक्षण हैं और जिसके पास धर्म है, उसकी रक्षा सदैव उसका धर्म करता है।
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भाग्यचक्र बिगाड़ता चला गया सारे जीवन का क्रम
आलेख के आरम्भ में हम ज्ञान, विद्या और कर्म के आकलन पर विचार कर लेते हैं। जब मनुष्य आयु में बड़ा होने लगता है, जब वह बूढ़ा अर्थात् बुजुर्ग हो जाता है, क्या तब वह ज्ञानी हो जाता है? क्या बड़ी डिग्रियाँ लेकर ज्ञानी हुआ जा सकता है? मैं ज्ञानवृद्ध होने की बात कर रहा हूँ। यानी तन से वृद्ध नहीं, जो ज्ञान से वृद्ध हो, उसकी बात कर रहा है।
मकर संक्रान्ति एक लोकोत्सव
सूर्य के उत्तरायण में आने से खरमास समाप्त हो जाता है और शुभ कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं। इस प्रकार मकर संक्रान्ति का पर्व भारतीय संस्कृति का ऊर्जा प्रदायक धार्मिक पर्व है।
महाकुम्भ प्रयागराज
[13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक]
रथारूढ़ सूर्य मूर्ति फलक
राजपूताना के कई राजवंश एवं शासक सूर्यभक्त थे और उन्होंने कई देवालयों का निर्माण भी करवाया। इन्हीं के शासनकाल में निर्मित मूर्तियाँ वर्तमान में भी राजस्थान के कई संग्रहालयों में संरक्षित हैं।
अस्त ग्रहों की आध्यात्मिक विवेचना
जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महद्युतिम्। तमोऽरि सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ।।
सूर्य और उनका रत्न माणिक्य
आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।। हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥
नागाओं का अचानक यूँ चले जाना!
नागा साधु किसी समय समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए ही जीते थे, अपने लिए कतई नहीं। महाकुम्भ पर्व के अवसर पर नागा साधुओं को न किसी ने आते हुए देखा और न ही जाते हुए।
नागा साधुओं के श्रृंगार हैं अद्भुत
नागाओं की एक अलग ही रहस्यमय दुनिया होती है। चाहे नागा बनने की प्रक्रिया हो अथवा उनका रहन-सहन, सब-कुछ रहस्यमय होता है। नागा साधुओं को वस्त्र धारण करने की भी अनुमति नहीं होती।
इतिहास के झरोखे से प्रयागराज महाकुम्भ
सितासिते सरिते यत्र संगते तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति। ये वे तन्वं विसृजति धीरास्ते जनासो अमृतत्वं भजन्ते ।।
कैसा रहेगा भारतीय गणतन्त्र के लिए 76वाँ वर्ष?
26 जनवरी, 2025 को भारतीय गणतन्त्र 75 वर्ष पूर्ण कर 76वें वर्ष में प्रवेश करेगा। यह 75वाँ वर्ष भारतीय गणतन्त्र के लिए कैसा रहेगा? आइए ज्योतिषीय आधार पर इसकी चर्चा करते हैं।