ईसाई षड़यंत्रों के लिए बड़ी चुनौती थे भगवान बिरसा मुंडा
Kendra Bharati - केन्द्र भारती|Kendra Bharati - November 2022
१५ नवबर बिरसा मुंडा जयंती पर विशेष
लखेश्वर चन्द्रवंशी 'लखेश'
ईसाई षड़यंत्रों के लिए बड़ी चुनौती थे भगवान बिरसा मुंडा

वन में रहनेवाले जनजातियों ( वनवासियों) को एकत्र कर अंग्रेजी शासकों के दमनकारी एवं कठोर कानून के खिलाफ व्यापक आंदोलन चलाने वाले बिरसा मुंडा आज अपने अनुयायियों के बीच ‘भगवान' के रूप में पूजे जाते हैं और देशभर में उन्हें वनवासियों का प्रेरणाप्रद नेता माना जाता है। अपने समुदाय के लोगों के उत्पीड़न और उनकी जमीन पर 'बाहरी' लोगों का कब्जा सहित विभिन्न मुद्दों को लेकर उन्होंने लोगों को जागरूक किया और उनके आंदोलन ने अंग्रेज सरकार की नाक में दम कर दिया।

झारखण्ड की राजधानी रांची के पास उलिहातू में १५ नवम्बर, १८७५ को वनवासियों के लोकनेता बिरसा मुंडा का जन्म हुआ। उनके पिता, चाचा, ताऊ सभी ने ईसाई पंथ स्वीकार कर लिया था । बिरसा का बचपन अपने घर में, ननिहाल में और मौसी की ससुराल में बकरियों को चराते हुए बीता। बाद में उन्होंने कुछ दिन तक 'चाईबासा' के जर्मन मिशन स्कूल में शिक्षा अर्जित की। परन्तु स्कूलों में उनकी जनजातीय संस्कृति का जो उपहास किया जाता था, वह बिरसा को सहन नहीं हुआ। इस पर उन्होंने भी पादरियों का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। फिर क्या था, ईसाई धर्म प्रचारकों ने उन्हें स्कूल से निकाल दिया। 

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