इस युग में नारी जाति की वे ही आदर्श हैं। उनका जीवन अद्भुत था। नरदेह धारण करके एक साधारण घरेलू महिला की भाँति रहते हुए भी वे साक्षात् आद्याशक्ति जगदम्बा थीं। शास्त्रों में काली, तारा, षोडशी आदि जिन दस महाविद्याओं का उल्लेख है, माँ उन्हीं में से एक थीं। युगधर्म की स्थापना के लिए वे श्रीरामकृष्ण की नरलीला में परिपूरक के रूप में अवतीर्ण हुई थी। साधारण मानव मला उन्हें कैसे समझ सकेगा? शुरू में हम लोग भी उन्हें नहीं समझ सके थे। वे अपने दैवी स्वरूप को इस प्रकार छिपाए रखती थीं कि किसी के लिए भी उन्हें समझना कठिन था।
थीं यह बात वे कौन ठाकुर ही ठीक-ठीक जानते थे और स्वामीजी ने भी कुछ हद तक उन्हें समझा था। पाश्चात्य देशों की यात्रा करने के पूर्व स्वामीजी ने एकमात्र माताजी को ही अपना उद्देश्य बताया था और उनका आशीष लेकर ही समुद्र को पार कर गए थे। माँ ने भी उन्हें जी खोलकर आशीर्वाद देते हुए कहा था - 'बेटा, तुम दिग्विजयी होकर लौटो। तुम्हारे मुख में सरस्वती विराजित हों। और हुआ भी वैसा ही। माताजी के आशीर्वाद से स्वामीजी विश्वजयी हुए थे। कभी-कभी तो वे यहाँ तक कहते कि माँ श्रीरामकृष्ण से भी अधिक महान् हैं! माँ के प्रति उनकी श्रद्धा इतनी ही गहन थी! श्रीरामकृष्ण ने कभी कहा था, 'नौबतखाने में जो (माँ) है, वह यदि किसी पर नाराज़ हो जाए, तो उसे बचाने की क्षमता मुझमें भी नहीं हैं।'
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प्रेमकृष्ण खन्ना
स्थानिक विभूतियों की कथा - २५
स्वस्थ विश्व का आधार बना 'मिलेट्स'
मिलेट्स यानी मोटा अनाज। यह हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारम्भ समारोह के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के इस सन्देश से समझा जा सकता है :
जब प्राणों पर बन आयी
एक नदी के किनारे एक पेड़ था। उस पेड़ पर बन्दर रहा करते थे।
देव और असुर
बहुत पहले की बात है। तब देवता और असुर इस पृथ्वी पर आते-जाते थे।
हर्षित हो गयी वानर सेना
श्री हनुमत कथा-२१
पण्डित चन्द्र शेखर आजाद
क्रान्तिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलानेवाले अद्भुत योद्धा
भारत राष्ट्र के जीवन में नया अध्याय
भारत के त्रिभुजाकार नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह हर किसी को अभिभूत करनेवाला था।
समान नागरिक संहिता समय की मांग
विगत दिनों से समान नागरिक संहिता का विषय निरन्तर चर्चा में चल रहा है। यदि इस विषय पर अब भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इसके गम्भीर परिणाम आनेवाली सन्तति और देश को भुगतना पड़ सकता है।
शिक्षा और स्वामी विवेकानन्द
\"यदि गरीब लड़का शिक्षा के मन्दिर न आ सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए।\"
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
२३ जुलाई, जयन्ती पर विशेष