दैवी सहायता उन्हें प्राप्त होती है जो अपनी पात्रता विकसित करते हैं । गुरु की सहायता, ईश्वर की सहायता वहीं टिकती है जो अपने को थोड़ा कसते हैं, पात्रता विकसित करते हैं।
संत ज्ञानेश्वर महाराज अपनी कथा में बता रहे थे कि "बड़े-बड़े अनुदान बिना योग्यता के नहीं मिलते हैं। इसीलिए अपने-आपका उद्धार करना चाहिए, अपनी योग्यता विकसित करनी चाहिए।”
एक बड़े घराने की माई ने कथा पूरी होने के बाद कहा : ‘‘महाराज ! ईश्वर तो ईश्वर है । क्या योग्यता, क्या अयोग्यता देखेगा ? सब ईश्वर के बच्चे हैं, ईश्वर तो खुले हाथ बाँटेगा । योग्यता देखना – न देखना ईश्वर के लिए क्या मायने रखता है!”
ज्ञानेश्वरजी ने कहा : ‘‘अच्छा!"
माई बोली : "हम धनी लोग भी जब योग्यताअयोग्यता नहीं देखते हैं, ऐसे ही लुटाते हैं तो ईश्वर तो धनियों का धनी है। ईश्वर तो लुटाये, वह क्यों योग्यता देखे?"
ज्ञानेश्वरजी ने देखा कि यह माई उपदेश से नहीं समझेगी, प्रत्यक्ष प्रयोग करना पड़ेगा।
هذه القصة مأخوذة من طبعة August 2022 من Rishi Prasad Hindi.
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