अलबेले बेला की निराली गुरुनिष्ठा
Rishi Prasad Hindi|July 2023
गुरु गोविंदसिंहजी के एक शिष्य बेला ने उनसे निवेदन किया : "गुरुजी ! मुझे कुछ सवा दीजिये।"
अलबेले बेला की निराली गुरुनिष्ठा

गोविंदसिंहजी ने पूछा : "तू पढ़ा-लिखा है?" 

"नहीं गुरुजी ! मैं अनपढ़ हूँ।" 

"धनुष-बाण चलाना जानता है?" 

"नहीं गुरुजी ! नहीं जानता।"

'अच्छा तो तुझे क्या आता है?"

"गुरुजी! मैं किसान हूँ, घोड़ों की अच्छी तरह देखभाल कर सकता हूँ।”

गोविंदसिंहजी ने उसे अस्तबल में घोड़ों की सेवा दे दी और कहा : ‘‘मैं प्रतिदिन तुझे याद करने के लिए 'जपुजी साहिब' की एक पंक्ति दूँगा, तू उसे दोहराते रहना।"

बेला बड़ी तत्परता से सेवा करने लगा। गोविंदसिंहजी रोज उसे एक पंक्ति देते और वह दिनभर उसे बड़े प्रेम से गुनगुनाता रहता।

एक दिन गोविंदसिंहजी घोड़े पर सवार हो के युद्ध के लिए जा रहे थे, इतने में वह आया, बोला : ‘‘गुरुजी ! मुझे आज के लिए पंक्ति दे दीजिये।"

هذه القصة مأخوذة من طبعة July 2023 من Rishi Prasad Hindi.

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