शिष्य गुरु-पद का अधिकारी कब बनता है?
Rishi Prasad Hindi|June 2024
गुरुपूर्णिमा निकट आ रही है। इस अवसर पर ब्रह्मानुभवी महापुरुषों द्वारा अपने शिष्यों की गढ़ाई और सत्शिष्यों द्वारा ऐसी कसौटियों में भी निर्विरोधता, अडिग श्रद्धा-निष्ठा और समर्पण युक्त आचरण का वृत्तांत सभी गुरुभक्तों के लिए पूर्ण गुरुकृपा की प्राप्ति का राजमार्ग प्रशस्त करनेवाला एवं प्रसंगोचित सिद्ध होगा।
शिष्य गुरु-पद का अधिकारी कब बनता है?

प्रस्तुत है स्वामी मुक्तानंदजी द्वारा अपने गुरु आश्रम, गुरु-सान्निध्य में बितायी गयी घड़ियों का संस्मरण:

एक बार किसीने मुक्तानंदजी से पूछा : “अपने गुरुदेव भगवान नित्यानंद के साथ आपको जो साधना के अनुभव हुए, उनके बारे में आप हमें कुछ बतायेंगे?”

स्वामी मुक्तानंदजी ने कहा : "मेरे गुरुदेव भगवान नित्यानंद ने साधना में मेरी बहुत सहायता की, विशेषकर मेरे अहं को कुचलने में। मैं अर्धविद्वान-सा था। मैंने कुछ पुस्तकें पढ़ रखी थीं और मुझे शास्त्रों का थोड़ा-बहुत ज्ञान था एवं उस ज्ञान का अहंकार भी था। और इन सबसे बढ़कर बात यह थी कि मैंने संन्यासी के वस्त्र पहन रखे थे और सतत अपनी उस भूमिका को पूरा-पूरा निभाता था। मुझे ठीक करने में मेरे गुरु को बहुत परेशानी उठानी पड़ी होगी परंतु फिर भी उन्होंने ऐसा किया।

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