आयुर्वेद के अनुसार यह शीतल, रुक्ष, रुचिकर, भूखवर्धक, पचने में हलकी, मूत्र व मल को साफ लानेवाली तथा पित्त, कफ व रक्त-विकार को दूर करनेवाली होती है। यह रक्तपित्त (नाक, मल-मूत्र द्वार आदि से खून बहना) में हितकारी है। कब्ज, पेशाब में जलन, बवासीर, सूजन, अधिक मासिक स्राव एवं श्वेतप्रदर आदि में लाभकारी है। आँखों के लिए भी हितकारी है।
चौलाई में उपरोक्त गुणों के साथ एक और विशेष गुण विद्यमान है जिसे शायद ही हर कोई जानता हो। आयुर्वेद के शास्त्रों में चौलाई अपने विषनाशक गुणों के कारण जानी जाती है। इसके विषनाशक प्रभाव को प्रकाशित करते हुए आचार्य चरकजी कहते हैं :
रूक्षो मदविषघ्नश्च प्रशस्तो रक्तपित्तिनाम् ।
मधुरो मधुरः पाके शीतलस्तण्डुलीयकः ॥
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रूहानी सौदागर संत-फकीर
१५ नवम्बर को गुरु नानकजी की जयंती है। इस अवसर पर पूज्य बापूजी के सत्संग-वचनामृत से हम जानेंगे कि नानकजी जैसे सच्चे सौदागर (ब्रहाज्ञानी महापुरुष) समाज से क्या लेकर समाज को क्या देना चाहते हैं:
पितरों को सद्गति देनेवाला तथा आयु, आरोग्य व मोक्ष प्रदायक व्रत
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कर्म करने से सिद्धि अवश्य मिलती है
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अपने ज्ञानदाता गुरुदेव के प्रति कैसा अद्भुत प्रेम!
(गतांक के 'साध्वी रेखा बहन द्वारा बताये गये पूज्य बापूजी के संस्मरण' का शेष)
समर्थ साँईं लीलाशाहजी की अद्भुत लीला
साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज के महानिर्वाण दिवस पर विशेष
धर्मांतरणग्रस्त क्षेत्रों में की गयी स्वधर्म के प्रति जागृति
ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि।