अपने ज्ञानदाता गुरुदेव के प्रति कैसा अद्भुत प्रेम!
Rishi Prasad Hindi|October 2024
(गतांक के 'साध्वी रेखा बहन द्वारा बताये गये पूज्य बापूजी के संस्मरण' का शेष)
अपने ज्ञानदाता गुरुदेव के प्रति कैसा अद्भुत प्रेम!

साध्वी रेखा बहन आगे बताती हैं : "एक बार गुरुदेव की आज्ञा से मैं आश्रम की एक वक्ता बहन के साथ सत्संग करने हल्द्वानी (उत्तराखंड) गयी थी। हमारे साथ आश्रम के एक वक्ता भाई भी थे।

उन बहन ने मुझसे कहा : "नैनीताल पास में है, क्यों न हम दादागुरुजी (पूज्य बापूजी के सद्गुरु साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज) का आश्रम जायें?"

संयोगवश कुछ देर बाद बापूजी से दूरभाष द्वारा बात हुई तो उन बहन ने वहाँ जाने की आज्ञा हेतु श्रीचरणों में निवेदन किया। पूज्यश्री बोले : "ठीक है, जाओ, देख के आओ आश्रम। तुम पहाड़ी चढ़ाई चढ़ के आश्रम जाओगे तो पका पकाया भोजन खाकर नहीं आना। पहाड़ी पर जो लोग रहते हैं वे सब्जी, आटा, दाल आदि लाने के लिए पहाड़ी से नीचे उतरते हैं और सामान लेकर चढ़ाई चढ़ के मेहनत से ऊपर जाते हैं। तुम सीधा-सामान साथ में ले के जाना और खुद भोजन बनाना।”

किसीको अपने कारण अतिरिक्त श्रम न करना पड़े इस बात का कितना खयाल रखते हैं गुरुदेव !

هذه القصة مأخوذة من طبعة October 2024 من Rishi Prasad Hindi.

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