जो अश्लील कृत्य करते हैं वे तो तबाही के रास्ते जाते ही हैं किंतु कल्पित फिल्म के अश्लील दृश्यों को देखने से भी सत्यानाश हो जाता है, व्यक्ति दुश्चरित्रवान हो जाते हैं। कामुक या गंदे सीरियल, फिल्में देखकर कई युवक-युवतियाँ तबाह हो जाते हैं। एक फिल्म आयी थी - 'एक दूजे के लिए', उसे देखकर कई प्रेमी-प्रेमिकाएँ आत्महत्या करके मर गये।
कृष्णानगर (अहमदाबाद) की एक लड़की का किसी लड़के से प्रेम था, माँ-बाप ने दूसरी जगह उसकी सगाई कर दी तो उसने चिट्ठी लिख दी 'मरते एक दूजे के लिए' और धड़ाक! छत से गिरी और मर गयी। फलाना फलानी जगह गया, मर गया। वह फिल्म चली तो कई लोगों की मरने की खबरें आती थीं कि यह चिट्ठी मिली है: 'मरते एक दूजे के लिए'। जबकि फिल्म में अभिनयमात्र होता है, सचमुच अभिनेता-अभिनेत्री मरते नहीं हैं एक दूजे के लिए। यह झूठी कल्पना भी समाज को डुबा सकती है तो कभी-कभी भगवान के लिए भी कल्पना कर देते हैं कि 'भगवान ऐसे हैं, मंद-मंद मुस्करा रहे हैं, हमारे करीब आ रहे हैं, हमारा हालचाल पूछ रहे हैं, हमको सांत्वना दे रहे हैं, लुका-छिपी खेल रहे हैं' तो इस प्रकार भगवान के साथ कल्पना जुड़ती है तो कल्याण कर देती है। अतः भगवान को सखा मानो, पुत्र मानो, स्नेही मानो, उद्धारक मानो।
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रूहानी सौदागर संत-फकीर
१५ नवम्बर को गुरु नानकजी की जयंती है। इस अवसर पर पूज्य बापूजी के सत्संग-वचनामृत से हम जानेंगे कि नानकजी जैसे सच्चे सौदागर (ब्रहाज्ञानी महापुरुष) समाज से क्या लेकर समाज को क्या देना चाहते हैं:
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ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि।