
११ दिसम्बर को मोक्षदा एकादशी है। इसके माहात्म्य के बारे में पूज्य बापूजी के सत्संग-वचनामृत में आता है:
युधिष्ठिर ने पूछा: "माधव! मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है और उसका क्या फल है?"
भगवान श्रीकृष्ण बोले: "युधिष्ठिर! इस एकादशी का नाम 'मोक्षा (मोक्षदा)' है। यह बड़े-बड़े पातकों का नाश करनेवाली है। नरकों में जो पितर दुःख भोग रहे होते हैं, इस एकादशी का व्रत करके उनको पुण्य अर्पण करने से उनकी सद्गति होती है और वे कुल-खानदान को आशीर्वाद देते हैं, मददरूप होते हैं। इस एकादशी का व्रत करनेवाला अपने पापों, रोगों, कुविचारों का शमन करता है।
पूर्वकाल की बात है। चम्पक नगर का राजा वैखानस बड़ा शूरवीर, कर्मठ, सत्संगी तथा प्रजा का पुत्र की भाँति पालन करनेवाला था। साधु-संतों, ब्राह्मणों, श्रेष्ठ पुरुषों में आदरबुद्धि रखना उसका स्वभाव था। एक प्रभात को राजा ने सपना देखा कि उसके माता-पिता, दादा-दादी आदि पितर नरकों में दुःखी हो रहे हैं।
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संत श्री आशारामजी गुरुकुलों के विद्यार्थियों ने प्राप्त किये विविध पुरस्कार
बापू के बच्चे, नहीं रहते कच्चे

व्रत, उपवास व जागरण का महापर्व
२६ फरवरी : महाशिवरात्रि पर विशेष

हमें इस पर विचार करना चाहिए
चार प्रकार के आनंदाभास हमारे जीवन में भर गये हैं। एक तो हम यह समझते हैं कि यह भोगेंगे तब सुखी होंगे। अर्थात् अपने आनंद को उठाकर भोग में रख दिया। यदि भोग चला गया पेरिस तब हम दुःखी रहेंगे। दूसरा, संग्रह का आनंद अर्थात् हम इतना इकट्ठा कर लेंगे अथवा हमारे पास इतना है, इस अभिमान से हम सुखी होंगे। एक में मनुष्य संग्रह का त्याग करके भी भोग का आनंद लेता है और दूसरे में भोग का त्याग करके संग्रह का आनंद लेता है।

सोशल मीडिया से अधिक जुड़ाव है घातक : प्रधानमंत्री, ऑस्ट्रेलिया
इन प्लेटफॉर्म्स का दुरुपयोग उपयोगकर्ताओं को एकतरफा सोचनेवाला तथा निष्क्रिय बना सकता है।

शरणागत के मनोरथ पूरे करते हैं करुणावान विश्वात्मा संत
२० मार्च को 'संत एकनाथजी षष्ठी' है। एकनाथजी महाराज के जीवन का एक बहुत रोचक प्रसंग पूज्य बापूजी के सत्संग-वचनामृत में आता है :

युवाओं हेतु आदर्श जीवन का संदेश
विद्याध्ययन करते हुए आदर्श, विवेक, सारावलोकनी बुद्धि, दूरदर्शी दृष्टि एवं अपने- आपका तथा संसार का ज्ञान प्राप्त करने से पहले जो युवक अधिकार एवं सम्मान लाभ की सिद्धि के लिए दौड़ पड़ते हैं, वे भी दरिद्र ही रह जाते हैं, कोई महत्त्वपूर्ण आदर्श पदाधिकार नहीं प्राप्त कर पाते।

पूज्य बापूजी का पावन संदेश आप स्वधर्म में आ जाओ
भगवद्गीता (३.३५) में आता है : स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ||

हृदय-ग्रंथि खोलो, अपने स्वभाव को जगाओ
१३ व १४ मार्च : होलिकोत्सव पर विशेष

यह जलनेति का चमत्कार है!
जैसे टूटे-फूटे पुराने बर्तन निकाल देते हैं वैसे टूटे-फूटे पुराने चश्मे बक्से में भरे हुए थे...

यह कैसी चाट-पूरी है!
श्री रामकृष्ण परमहंस जयंती (ति.अ.) : १ मार्च