आज जमाना बदला है और महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए एक खुला आसमान मिल गया है. वे अपनी काबिलीयत दिखा कर ऊंचे ओहदों तक पहुंच रही हैं. कामकाजी बन कर पैसे अपनी मुट्ठी में कर रही हैं. मगर यह सब उन के लिए इतना आसान भी नहीं. उन्हें घरपरिवार और बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी के साथसाथ जौब की जिम्मेदारियां भी उठानी पड़ रही हैं. इस चक्कर में कई दफा उन का वर्क लाइफ बैलेंस बिगड़ भी जाता है. वे हतोत्साहित भी हो जाती हैं. मगर फिर भी उन्हें अपने मकसद पर टिके रहना है. यही तो उन की असली जंग है.
'वूमन इन इंडिया इंक एचआर मैनेजर्स सर्वे रिपोर्ट' के अनुसार देश में 34% महिलाएं वर्क लाइफ बैलेंस के कारण नौकरी छोड़ देती हैं जबकि पुरुषों में यह सिर्फ 4% के लिए होता है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं के नौकरी छोड़ने के शीर्ष 3 कारणों में वेतन संबंधी चिताएं, कैरियर के अवसर और वर्क लाइफ बैलेंस हैं. वहीं पुरुषों के लिए इस के कारण वेतन संबंधी चिंताएं, कैरियर के अवसर और भविष्य में रोजगार की दिशा है.
क्या कहती है रिपोर्ट
आईआईएम अहमदाबाद की जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार भारत में केवल 32.25 फीसद महिलाएं ही वर्क लाइफ बैलेंस कर पाती हैं. एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार भारतीय महिलाएं अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में काफी अधिक तनावग्रस्त होती हैं, जिस का मुख्य कारण 'वर्क लाइफ बैलेंस की कमी है. कामकाजी जीवन में संतुलन की कमी तनाव का मुख्य कारण है.
दरअसल, रोजगार की दुनिया में महिलाओं का आना और टिकना बेहद मुश्किल है. हमारे पितृसत्तात्मक समाज में एक कामकाजी महिला से यह उम्मीद की जाती है कि वह घर के काम, बच्चों और परिवार के सदस्यों की देखभाल पर भी पूरा समय देंगी. तीजत्योहार हो या घर में किसी की शादी, बच्चे का जन्म हो या घर में बड़े बुजुर्ग की बीमारी महिलाओं को अपने काम के साथ इन सभी हालात को संभालने के लिए भी वक्त निकालना होता है.
यही वजह है कि अकसर कंपनियां महिलाओं को विशेषकर शादीशुदा महिलाओं को एसैट नहीं बल्कि लायबिलिटी समझती हैं. समस्या हमारे समाज और परिवार की भी है जो महिलाओं को नौकरी की इजाजत तो देता है पर साथ ही यह उम्मीद भी करता है कि वे घर के काम और बच्चों की जिम्मेदारी में मदद नहीं मांगेंगी.
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