कश्मीर - सरकारी विमर्श बनाम गाँधी, आम्बेडकर और लोहिया उर्मिलेश
Pratiman|July - December 2019
केंद्रीय सत्ता हासिल करने के बाद शुरुआत में कुछ समय तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर मामले में कुछ रणनीतिक-लचीलेपन का संकेत दिया था। इसके परिणामस्वरूप कश्मीर के अंदर और बाहर के कुछ राजनीतिक प्रेक्षक और टिप्पणीकार इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की कश्मीर-नीति में बड़ा बदलाव मानने लगे थे। पर ऐसे लोगों को निराश होने में देर नहीं लगी।
उर्मिलेश
कश्मीर - सरकारी विमर्श बनाम गाँधी, आम्बेडकर और लोहिया उर्मिलेश

Diese Geschichte stammt aus der July - December 2019-Ausgabe von Pratiman.

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महाभारत और सौंदर्यशास्त्र की चरम अनुभूति
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यथार्थ का अतिक्रमण : प्राचीन और आधुनिक आख्यानों का अंतर

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January - June 2020
भविष्य के महानायक या 'एक असम्भव सम्भावना'?
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गाँधी एक अर्थ में अनूठे हैं भारत के इतिहास में। भारत के विचारशील व्यक्ति ने कभी भी समाज, राजनीति और जीवन के संबंध में सीधी कोई रुचि नहीं ली है। भारत का महापुरुष सदा से पलायनवादी रहा है। उसने पीठ कर ली है समाज की तरफ़। उसने मोक्ष की खोज की है, समाधि की खोज की है, सत्य की खोज की है, लेकिन समाज और इस जीवन का भी कोई मूल्य है यह उसने कभी स्वीकार नहीं किया। गाँधी पहले हिम्मतवर आदमी थे जिन्होंने समाज की तरफ़ से मुँह नहीं मोड़ा। वह समाज के बीच खड़े रहे और जिंदगी के साथ और जिंदगी को उठाने की कोशिश उन्होंने की। यह पहला आदमी था जो जीवनविरोधी नहीं था, जिसका जीवन के प्रति स्वीकार का भाव था।

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January - June 2020
भाषा परिवार और सभ्यता का नस्ली सिद्धांत
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अठारहवीं से लेकर उन्नीसवीं सदी के दौरान युरोप के बौद्धिक मानस पर धर्म, समाज, राष्ट्र और नस्ल की श्रेष्ठता को भाषाओं की श्रेष्ठता के आईने में देखने का रुझान हावी था।

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January - June 2020
भय की महामारी
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भय की महामारी

यह देखना एक त्रासद अनुभव है कि जिस कोविड-19 के भय से मानव इतिहास के सबसे बड़े परिवर्तनों में से एक के घटित होने की आशंका है, वह भय बेहद अनुपातहीन और अतिरेकपूर्ण है। इस बात के भी कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं कि इन प्रतिबंधों से वायरस के संक्रमण या इससे होने वाली कथित मौतों को रोका जा सकता है। बेलारूस, निकारागुआ, तुर्की, स्वीडन, नार्वे, तंजानिया, स्वीडन, जापान आदि अनेक देशों ने डब्ल्यूएचओ की प्रत्यक्ष और परोक्ष सलाहों तथा मीडिया द्वारा बार-बार लानत-मलामत किये जाने के बावजूद या तो बिल्कुल लॉकडाउन नहीं किया, या फिर बहुत हल्के प्रतिबंध रखे। इनमें से किसी देश में कहीं अधिक मौतें नहीं हुई हैं। यह सही है कि बड़ी संख्या में लोगों के कोरोना-संक्रमण की पुष्टि हो रही है, लेकिन उससे बड़ा सच यह है कि यह वायरस उन संक्रमित लोगों में से अधिकांश लोगों को 'बीमार' तक कर पाने में सक्षम नहीं है।

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January - June 2020
औपनिवेशिक भारत में हिंदी का विज्ञान-लेखन
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उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में ब्रिटिश भारत में प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के खुलने और स्कूली शिक्षा के प्रसार के साथ ही भारतीय भाषाओं में विभिन्न विषयों की पाठ्य -पुस्तकों की ज़रूरत भी शिद्दत से महसूस की गयी।

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January - June 2020
हिंसक आर्थिकी का प्रतिरोध
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देशज इतिहासकारों की दृष्टि में

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July - December 2019
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