दलहन उत्पादन में राइजोबियम जीवाणु का महत्व
Modern Kheti - Hindi|1st August 2022
जीवाणु खाद
डा० राम प्रताप सिंह एवं सिद्रा किदवई
दलहन उत्पादन में राइजोबियम जीवाणु का महत्व

अवध विहार योजना 3 आज हमारा देश एक अरब जनसंख्या के आंकड़े को पार कर चुका है अर्थात विश्व परिदृष्य के हिसाब से हमारे देश में विश्व की 4.0 प्रतिशत जलराशि, 2.4 प्रतिशत भू-भाग और 16 प्रतिशत जनसंख्या है। यहां लगभग 60 करोड़ लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि में संलग्न हैं जिनमें तकरीबन 75 प्रतिशत लघु एवं सीमान्त कृषक हैं जिनके पास खेती के लिये भूमि केवल 54.6 प्रतिशत है। अत: इनके जीवन स्तर को सुधारने के लिये लागत प्रभावी तरीके से प्रति इकाई क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाना अति आवश्यक हैं। हमारी फसलों एवं फलदार पौधों को नाइट्रोजन तत्व की बहुत आवश्यकता होती है। परीक्षणों द्वारा सिद्ध हो चुका है कि हमारे राज्य में 95-97 प्रतिशत खेतों में नाइट्रोजन की कमी पायी जाती है। वायुमण्डल में लगभग 78 प्रतिशत नाइट्रोजन मौजूद है। पौधे एवं जन्तु सीधे इसे स्वतन्त्र नत्रजन का उपयोग नहीं कर सकते।

राइजोबियम : यह एक नम चारकोल एवं जीवाणु का मिश्रण है जिसके एक ग्राम भाग में 10 करोड़ से अधिक राइजोबियम जीवाणु होते हैं। यह जैव उर्वरक केवल दलहनी फसलों में प्रयुक्त किया जाता है तथा यह अलग-अलग प्रकार का राइजोबियम जीवाणु कल्चर का प्रयोग होता है। राइजोबियम जैव उर्वरक से बीज उपचार करने पर ये जीवाणु बीज पर चिपक जाते हैं। बीज अंकुरण के समय ये जीवाणु पौधों की जड़ों में प्रवेश करके जड़ों पर ग्रन्थियों का निर्माण करते हैं। ये ग्रन्थियाँ नाइट्रोजन स्थिरीकरण इकाइयां हैं तथा पौधें की बढ़वार इनकी संख्या पर निर्भर करती है। अधिक ग्रन्थियों के होने पर पैदावार भी अधिक होती है। राइजोबियम जीवाणु सहजीवी के रूप में पौधों की जड़ों में ग्रन्थियों के रूप में नत्रजन का संचय करती हैं। इस विधि से संचित 10 किलोग्राम कार्बनिक नत्रजन, 100 किलोग्राम अमोनियम सल्फेट के बराबर होती है।

राइजोबियम इनाकुलेन्ट : दलहनी फसलों की जड़ों पर दो प्रकार की ग्रन्थियां होती हैं।

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