बेहतर प्रोत्साहन नीति में संकट का समाधान
Modern Kheti - Hindi|December 01, 2023
धान की फसल के कटाई सीजन में एक बार फिर पराली जलाना खबरों में रहा। अब एक दशक से अधिक समय से, जब से पंजाब और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के आसपास के राज्यों में पराली में आग लगाना ज्वलंत मुद्दा बन गया है, नई दिल्ली में कुख्यात वायु प्रदूषण के लिए किसानों को दोषी ठहराये जाने के साथ ही इस आग पर काबू पाने का संघर्ष अभी जारी है।
देविंदर शर्मा
बेहतर प्रोत्साहन नीति में संकट का समाधान

हालांकि पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) ने दावा किया कि पिछले तीन साल में खेतों में आग लगने की घटनाओं में कमी आई, लेकिन 1 नवंबर के बाद तीन दिनों में इसमें 150 प्रतिशत का उछाल नजर आया। जबकि कई एफआईआर दर्ज की गई व जुर्माना लगाया गया फिर भी खेतों में आग लगने का संकट जारी रहा। संबंधित क्षेत्रों के एसडीएम को उन किसानों के राजस्व रिकॉर्ड में 'रेड एंट्रीज' करने के लिए कहा गया जो धान के अवशेषों को न जलाने के निर्देश नहीं मान रहे थे। 

लेकिन यहां एक पेच है जब पत्रकार कहते हैं कि उपलब्ध कराए गए उपग्रह डेटा के आधार पर आग लगने की घटनाओं की संख्या में कमी आई है, तो उन्हें यह अहसास नहीं होता कि वह क्षेत्र अधिक मायने रखता है जो आग से बचाया गया है। आग की संख्या में कमी समानुपातिक रूप से उस क्षेत्र में कमी से संबंधित नहीं है जिस पर पराली जलाई जाती है। उदाहरणतया, पंजाब ने दावा किया कि पिछले साल यानी 2022 के धान कटाई के मौसम में पिछले कुछ वर्षों में पराली जलाने की संख्या में 30 प्रतिशत की कमी आई, लेकिन जो क्षेत्र असल में खेत में पराली जलाने से बचाया गया था वह केवल 1.5 प्रतिशत था। यह दर्शाता है कि खेत में आग लगने की घटनाओं का डेटा कितना भ्रामक हो सकता है।

कटाई सीजन के शुरुआती कुछ हफ्तों में आग लगने की घटनाओं में महत्वपूर्ण कमी को लेकर खबरें आयीं। एक बार फिर ये न्यूज रिपोर्ट्स ऐसा आभास देती रहीं कि अवशेष जलाने की समस्या का बहुत हद तक खयाल रखा गया। वहीं इन खबरों के प्रकाशित होने तक पूरी खड़ी फसल की कटाई भी नहीं हुई थी जबकि इस साल पंजाब में करीब 190 लाख टन धान की फसल होने का अनुमान था। इसके बाद, जब गेहूं बुआई के लिए खेतों को तैयार करने का काम जोरों पर होगा तो आग लगाने की घटनाओं में तेजी जारी रहेगी।

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