रासायनिक उर्वरकों के असन्तुलित प्रयोग और जैविक खादों के नगण्य उपयोग के कारण भूमि में गौण तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होने से न केवल फसलों की पैदावार में गिरावट आयी है, बल्कि विभिन्न कृषि उत्पादों की गुणवत्ता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है। यह समस्या सब्जियों की खेती में ज्यादा गंभीर है, क्योंकि इनमें अन्य फसलों की तुलना में रासायनिक उर्वरकों और कृषि रक्षा रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग से वातावरणीय प्रदूषण की समस्या भी बढ़ती जा रही है। जिसके परिणामस्वरूप मनुष्यों और पशुओं में तरह-तरह के भयानक रोग पनपने लगे हैं। इन परिस्थितियों में सब्जियों की जैविक खेती अपनाकर न केवल गिरते हुए मिट्टी स्वास्थ्य और वातावरणीय प्रदूषण की समस्या को कम किया जा सकता है, बल्कि मनुष्य की पोषण सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सकती है। इस लेख में सब्जियों की जैविक खेती और सब्जियों की जैविक खेती के प्रमुख घटक, कीटनाशक एवं लाभ की प्रक्रिया का विवरण प्रस्तुत है।
जैविक खेती का अर्थ
जैविक खेती फसल उत्पादन की वह पद्धति है, जिसमें रासायनिक उत्पादों जैसे रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक, फफूंदनाशी, कवकनाशी, खरपतवारनाशी, वृद्धिनियामक इत्यादि का प्रयोग न करके जैविक पदार्थों जैसे जैविक खाद, जैव उर्वरक, हरी खाद, जैविक कीटनाशक तथा फसल चक्र इत्यादि के प्रयोग पर निर्भर रहते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य मिट्टी, पौधों, पशुओं और मनुष्यों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए फसलों की उत्पादकता बढ़ाना है।
जैविक खेती के बिंदु
1. जैविक परिवर्तन
2. जैविक कृषि प्रबंधन
3. प्रमाणीकरण
जैविक परिवर्तन जैविक कृषि प्रबंधन शुरू करने के समय से लेकर वास्तविक जैविक फसल उत्पादन के बीच के समय को परिवर्तन अवधि कहते हैं। यह अवधि एक वर्ष से लेकर तीन वर्ष तक की हो सकती है। वार्षिक फसलों के लिए परिवर्तन अवधि एक वर्ष और लंबी अवधि वाली फसलों एवं बागवानी पौधों के लिए दो से तीन वर्ष होती है। सफल जैविक परिवर्तन के लिए निम्नलिखित दिये गए बिन्दुओं को ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक है, जैसे-
1. सब्जियों की जैविक खेती एवं जैविक मानकों की जानकारी।
2. सब्जियों की जैविक खेती में प्रयुक्त होने वाले संसाधनों का ज्ञान।
Diese Geschichte stammt aus der 1st September 2024-Ausgabe von Modern Kheti - Hindi.
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गोभीवर्गीय सब्जियों के रोग और उनकी रोकथाम
सर्दी में गोभीवर्गीय सब्जियों (फूलगोभी, बंदगोभी व गांठगोभी) का बहुत महत्व है क्योंकि सर्दी में सब्जियों के आधे क्षेत्रफल में यही सब्जियां बोई जाती हैं। इन सब्जियों को कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोर्स, विटामिन ए एवं सी इत्यादि का अच्छा स्रोत माना जाता है।
हाई-टेक पॉलीहाउस खेती में अधिक उत्पादन के लिए कंप्यूटर की भूमिका
भारत देश में आज के समय जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है जिससे रहने के लिए लगातार कृषि योग्य भूमि का उपयोग कारखाने लगाने, मकान बनाने में हो रहा है। कृषि योग्य भूमि कम होने से जनसंख्या का भेट भरने की समस्या से बचने के लिए सरकार ने विभिन्न योजनाएं चला रखी हैं जिससे किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकें।
सरसों की खेती अधिक उपज के लिए उन्नत शस्य पद्धतियाँ
सरसों (Brassica spp.) एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है, जो पोषण और व्यवसायिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। भारत में सरसों का उपयोग मुख्यतः खाद्य तेल, मसाले और औषधि के रूप में किया जाता है।
गेहूं में सूक्ष्म पोषक तत्वों का महत्व
गेहूं में मुख्य पोषक तत्वों का संतुलित प्रयोग अति आवश्यक है। प्रायः किसान भाई उर्वरकों में डी.ए.पी. व यूरिया का अधिक प्रयोग करते हैं और पोटाश का बहुत कम प्रयोग करते हैं।
पॉलीटनल में सब्जी पौध तैयार करना
देश में व्यवसायिक सब्जी उत्पादन को बढ़ावा देने में सब्जियों की स्वस्थ पौध उत्पादन एक महत्वपूर्ण विषय है जिस पर आमतौर से किसान कम ध्यान देते हैं।
क्या है मनरेगा की कृषि में भागेदारी?
ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से कमियां पूरी करें और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए संबंधित विभागों से कनवरजैंस के लिए जोर दिया जाता है। जैसे खेतीबाड़ी, बागवानी, वानिकी, जल संसाधन, सिंचाई, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, नेशनल रूरल लिवलीहुड मिशन और अन्य प्रोग्रामों के सहयोग से जो कि मनरेगा अधीन निर्माण की संपति की क्वालिटी को सुधारना और टिकाऊ बनाया जा सके।
अलसी की फसल के कीट व रोग एवं उनका नियंत्रण
अलसी की फसल को विभिन्न प्रकार के रोग जैसे गेरुआ, उकठा, चूर्णिल आसिता तथा आल्टरनेरिया अंगमारी एवं कीट यथा फली मक्खी, अलसी की इल्ली, अर्धकुण्डलक इल्ली चने की इल्ली द्वारा भारी क्षति पहुंचाई जाती है जिससे अलसी की फसल के उत्पादन में भरी कमी आती है।
मटर की फसल के कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें
अच्छी उपज के लिए मटर की फसल के कीट एवं रोग की रोकथाम जरुरी है। मटर की फसल को मुख्य रोग जैसे चूर्णसिता, एसकोकाईटा ब्लाईट, विल्ट, बैक्टीरियल ब्लाईट और भूरा रोग आदि हानी पहुचाते हैं।
कृषि-वानिकी और वनों व वृक्षों का धार्मिक एवं पर्यावरणीय महत्व
कृषि-वानिकी : कृषि वानिकी भू-उपयोग की वह पद्धति है जिसके अंतर्गत सामाजिक तथा पारिस्थितिकीय रुप से उचित वनस्पतियों के साथ-साथ कृषि फसलों या पशुओं को लगातार या क्रमबद्ध ढंग से शामिल किया जाता है। कृषि वानिकी में खेती योग्य भूमि पर फसलों के साथ-साथ वृक्षों को भी उगाया जाता है। इस प्रणाली द्वारा उत्पाद के रुप में ईंधन की लकड़ी, हरा चारा, अन्न, मौसमी फल इत्यादि आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इस प्रणाली को अपनाने से भूमि की उपयोगिता बढ़ जाती है।
'रिचेस्ट फार्मर ऑफ इंडिया' अवार्ड प्राप्त करने वाली सफल महिला किसान-नीतुबेन पटेल
नीतूबेन पटेल ने जैविक कृषि में उत्कृष्ट योगदान देकर \"सजीवन\" नामक फार्म की स्थापना की, जो 10,000 एकड़ में 250 जैविक उत्पाद उगाता है। उन्होंने 5,000 किसानों और महिलाओं को प्रशिक्षित कर जैविक खेती में प्रेरित किया।