हर साल 29 जुलाई को दुनिया के कई देशों में विश्व टाइगर दिवस मनाया जाता है. लेकिन इस साल जुलाई माह में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की रिपोर्ट देख कर वन विभाग के अधिकारियों के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. एनटीसीए की रिपोर्ट पर नजर डाली जाए तो साल 2022 में एक जनवरी से 15 जुलाई तक पूरे देश में कुल 74 बाघों की मौत हो चुकी है.
इन में से सब से अधिक 27 बाघों की मध्य प्रदेश में मौत हुई है. यह संख्या इस अवधि के दौरान किसी भी राज्य में मारे गए बाघों की संख्या से अधिक है. मध्य प्रदेश के नैशनल पार्कों में बाघों की सब से अधिक संख्या के आधार पर एमपी को 'टाइगर स्टेट' का दरजा मिला हुआ है, मगर मध्य प्रदेश में पिछले साढ़े 6 महीने में 27 बाघों की मौत की खबर भी चौंकाने वाली है.
एनटीसीए के आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश के बाद दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र आता है, जहां इस अवधि के दौरान 15 बाघों की
मौत हुई. जबकि इस के बाद कर्नाटक में 11, असम में 5, केरल और राजस्थान में 4-4, उत्तर प्रदेश में 3, आंध्र प्रदेश में 2 और बिहार, ओडिशा एवं छत्तीसगढ़ में 1-1 बाघ की मौत हुई है.
2021 के इन्हीं 7 माह में 90 बाघों की मौत हुई थी. तब भी मध्य प्रदेश में सब से ज्यादा 28 बाघ मरे थे. पिछले 10 साल के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो मध्यप्रदेश में 270, महाराष्ट्र में 183, कर्नाटक में 150, उत्तराखंड में 96, तमिलनाडु में 67, असम में 71, उत्तर प्रदेश में 57, केरल में 55, राजस्थान में 25 और पंजाब में 13 बाघों की मौत हो चुकी है.
अकेले मध्य प्रदेश की बात करें तो प्रदेश में वर्ष 2012 से 2020 तक शिकारियों ने 45 बाघों की हत्या की. जबकि बाघों ने 52 लोगों का शिकार किया.
गौरतलब है कि 31 जुलाई, 2019 को जारी हुई राष्ट्रीय बाघ आंकलन रिपोर्ट 2018 के अनुसार, 526 बाघों के साथ मध्य प्रदेश ने 'टाइगर स्टेट' का अपना खोया हुआ प्रतिष्ठित दरजा कर्नाटक से 8 साल बाद फिर से हासिल किया है.
2010 से 2018 तक कर्नाटक में बाघों की संख्या सब से अधिक 524 होने के कारण उसे ही टाइगर स्टेट का दरजा मिला हुआ था. 2018 में हुई बाघों की गणना में कर्नाटक में बाघों की संख्या 524 रह गई और मध्य प्रदेश में 526 बाघों की संख्या के लिहाज से वह देश का सिरमौर बन गया.
Diese Geschichte stammt aus der October 2022-Ausgabe von Manohar Kahaniyan.
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