अभी रात का अंधेरा पूरी तरह छंटा भी नहीं था कि गाजियाबाद शहर की कोतवाली के इसलामपुर मोहल्ले में स्थित एक मकान से औरतों के जोरजोर से रोने की आवाजों ने आसपड़ोस के लोगों की नींद में खलल पैदा कर दी.
जो लोग जल्दी उठ जाते थे, वह और जो अभी रजाइयों में दुबके नींद की आगोश में समाए हुए थे, हड़बड़ा कर अपने अपने घरों से बाहर निकल आए.
यह रोने की आवाजें नन्हे ठेकेदार के घर से आ रही थीं. नन्हे ठेकेदार के घर में जरूर कोई अनहोनी हुई है, यह सोच कर लोग उस के दरवाजे पर जमा होने लगे. कुछ बुजुर्ग आगे बढ़े और उन्होंने नन्हे ठेकेदार के घर का दरवाजा थपथपा कर जोर से पूछा, "नन्हे, क्या हो गया है?"
नन्हे ठेकेदार कुछ ही देर में दरवाजा खोल कर बाहर आया. उस के चेहरे पर आंसुओं की मोटीमोटी लकीरें थीं, जो रेंगती हुई उस के कुरते का अगला भाग भिगो रही थीं.
"क्या हुआ नन्हे?" एक बुजुर्ग ने घबराए स्वर में पूछा, “तुम रो रहे हो... अंदर औरतें भी रोनापीटना कर रही हैं. हुआ क्या है भाई?"
"मेरी बेटी गुलफ्शा..." नन्हे इतना ही कह पाया तो उस की रुलाई फूट पड़ी. वह फफफफफक कर रोने लगा अड़ोसपड़ोस के लोग अधूरे वाक्य का अर्थ निकालने का प्रयास करते हुए दरवाजे से अंदर घुस गए.
अंदर बरामदे में चारपाई पर 20 वर्षीया गुलफ्शा पीठ के बल पड़ी थी. उस का शरीर बेजान, बेहरकत था. देखने से ही समझ में आ रहा था कि उस की मौत हो चुकी है. चारपाई के पास घर की औरतें बैठीं छाती पीटपीट कर रो रही थीं. सिरहाने की तरफ नन्हे के दोनों बेटे तौहीद और मोहिद गमजदा खड़े थे.
नन्हे ठेकेदार भी अंदर आ गया. वह अभी भी रो रहा था.
"यह सब कैसे और कब हुआ नन्हे?" एक व्यक्ति ने जो उम्र में नन्हे से बड़ा था, पूछा. उस के स्वर में हैरानी थी.
"पता नहीं इब्राहिम, हम सब सोए हुए गुलफ्शा भी अपनी अम्मी के कमरे में सो रही थी. वह बाहर बरामदे में कब और कैसे आ गई, उस के साथ क्या घटा, कुछ नहीं मालूम. सुबह मेरी बीवी शमशीदा गुसलखाने में जाने के लिए उठी तो उसे बरामदे की चारपाई पर गुलफ्शा मृत नजर आई. उस ने चीखते हुए मुझे उठाया फिर मेरे बेटों और बहू को. हम ने बाहर गुलफ्शा को चारपाई पर इस हालत में देखा तो सभी रोने लगे." नन्हे ने भर्राई आवाज में बताया.
Diese Geschichte stammt aus der December 2022-Ausgabe von Satyakatha.
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