आशीष ने 500-500 रुपए की गड्डियां प्रियंका के सामने मेज पर रखते हुए कहा, "यह लो तुम्हारे डेढ़ लाख रुपए, वह भी मूलधन में से नहीं, बल्कि शेयर में जो इनवैस्ट कया था, उसी के लाभ के हैं."
प्रियंका फायदे की बात सुन कर खुश हुई. तभी आशीष ने कहा, "प्रियंका, यह देख कर शायद तुम्हें विश्वास नहीं हो रहा है, मगर यह सच है कि मैं जो कहता हूं उस से कभी पीछे नहीं हटता."
प्रियंका सिंह की मुलाकात अभी हाल ही में आशीष साहू से अचानक ही हुई थी. वह छत्तीसगढ़ की इस्पात नगरी भिलाई के सैक्टर-7 की रहने वाली थी. पिता बृजेश सिंह एक सरकारी बैंक में मैनेजर थे और वह प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की पढ़ाई करने छत्तीसगढ़ की राजधानी बिलासपुर के मन्नू चौक में स्थित एक हौस्टल में रह रही थी.
24 वर्षीय प्रियंका सिंह देखने में तीखे नाकनक्श की आकर्षक युवती थी. वह जब स्कूटी पर हौस्टल से निकलती तो नौजवानों की आंखें उसे देखती रह जाती थीं. आशीष साहू भी उसे अकसर देखा करता था.
एक दिन अचानक ही उस ने देखा कि प्रियंका सिंह स्कूटी से आ रही है, वह उस के मैडिकल स्टोर के सामने आ कर रुकी.
आशीष साहू ने सोचा कि इसे शायद किसी दवाई आदि की जरूरत होगी. वह प्रसन्न भाव से उस की ओर देख रहा था और मन ही मन खुश था कि जिस लड़की को वह अकसर आतेजाते देखता था, आखिर आज उस की दुकान पर आई हुई है.
प्रियंका ने उस से मधुर स्वर में कहा, “मैं पास ही कोचिंग सेंटर में पढ़ाई करती हूं. वहां कोई मेरी स्कूटी के साथ छेड़छाड़ करते हैं तो क्या मैं आप के यहां यह गाड़ी पार्किंग कर सकती हूं?"
आशीष साहू ने मुसकरा कर कहा, "आप बेझिझक अपनी गाड़ी यहां खड़ी कर सकती हैं. यहां आप की स्कूटी पूरी तरह सुरक्षित रहेगी."
इस तरह प्रियंका सिंह और आशीष साहू की मुलाकात धीरेधीरे दोस्ती में बदलने लगी.
Diese Geschichte stammt aus der January 2023-Ausgabe von Satyakatha.
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