"अरे, तुम लड़के हो कर रोते हो ! कोई सुनेगा तो क्या सोचेगा..."
"अरे, दर्द को अंदर ही अंदर पीना सीखो, तुम कोई लड़की नहीं कि जरा सी बात पर टेसुए बहाने लग जाओ..."
"भाई, क्या औरतों की तरह रो रहा है, अरे मर्द को दर्द नहीं होता, समझे..."
ऊपर लिखे चंद डायलॉग्स तकरीबन हर लड़के को बचपन में परिवार या समाज या कहीं ना कहीं सुनने को मिलते ही हैं।
सवाल यह है कि क्या वाकई मर्द को दर्द नहीं होता है। क्या उनकी शारीरिक बनावट इतनी मजबूत होती है कि वे कैसी भी पीड़ा बिना उफ किए सह सकते हैं? क्या वे मानसिक तौर पर इतने सशक्त होते हैं कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में खुद को कमजोर नहीं पड़ने देते? इन्हीं सवालों के जवाब हमने जानने चाहे कुछ एक्सपर्ट्स से, जिन्होंने हमें कई ऐसे तथ्य बताए, जो इस बात को साबित करते हैं कि दर्द तो मर्द को भी होता है।
आईपी युनिवर्सिटी के मेडिकल डीन और वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. यतीश अग्रवाल कहते हैं कि महिलाओं से तुलना करें तो रजोनिवृत्ति से पहले और बाद के कुछ वर्षों तक स्त्री को जो हारमोनल सुरक्षा कवच मिला होता है, वह पुरुषों को नहीं मिलता। इस वजह से पुरुषों के शारीरिक रोगों की चपेट में आने की आशंका अधिक होती हैं।
दूसरी बात मानसिक धरातल पर स्त्री और पुरुष में व्यवहार का जो अंतर दिखायी देता है, वह बहुत कुछ समाज से सीखा गया होता है, उससे नियंत्रित होता है। बड़ी से बड़ी विपदा हो, गंभीर त्रासदी आ जाए, पुरुष अपने दर्द की अभिव्यक्ति नहीं कर सकता, ऐसा उसे बचपन से सिखाया गया होता है। यह पारंपरिक परिभाषा है, लेकिन दर्द तो बराबर ही महसूस होता है। मनोविज्ञान के क्षेत्र में काम करने वाले बहुत से विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ऐसी कोई स्थिति आए तो रो लेने में कोई हर्ज नहीं है। इससे आप कमजोर नहीं हो जाएंगे।
इसके अलावा कुछ विकार हैं, जिनमें से कुछ पुरुषों में अधिक होते हैं, कुछ स्त्रियों में अधिक होते हैं। यह एक बायोलॉजिकल तथ्य है। लेकिन ऐसा नहीं है कि पुरुषों को कम विकार होते हैं, अलबत्ता उन्हें कुछ ज्यादा ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
Diese Geschichte stammt aus der June 2024-Ausgabe von Vanitha Hindi.
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