आपके अनुसार शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता है। 'मत रहना स्कूल के भरोसे' किस तरह के बदलाव की बात करती है?
पहले तो मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि यह किताब स्कूलों के खिलाफ नहीं है। यह किताब तो मौजूदा शिक्षा व्यवस्था और स्कूलिंग के खिलाफ है। यह पुस्तक शिक्षा के क्षेत्र में एक वृहद परिवर्तन की अपील करती है। बदलते हुए ज़माने के साथ पढ़नेपढ़ाने और सीखने सिखाने के तरीक़ों को बदलना चाहती है। यह पुस्तक छात्रों से ज़्यादा अभिभावकों और शिक्षकों के लिए है, जो यदि तय कर लें तो देश में सकारात्मक बदलाव बहुत जल्द आ सकता है।
मातृभाषा में शिक्षा से किसी भी देश की तरक्की संभव है। इसे आप कितना उचित मानते हैं?
एक बार हम विश्व की महाशक्तियों पर ग़ौर करते हैं- अमेरिका की प्रमुख भाषा यू.एस. इंग्लिश है, ब्रिटेन की इंग्लिश, फ्रांस की फ्रेंच, रूस की रशियन, जर्मनी की जर्मन, चीन की मैंडरिन और जापान की निहोंगो। क्या आपने कुछ समानता देखी इन महाशक्तियों में? हाँ, यह कि उनकी प्रमुख भाषा इनकी अपनी मातृभाषा है। इन देशों में अपनी मातृभाषा में ही पढ़ाई होती है, चाहे वह विज्ञान और तकनीकी हो, चिकित्सकीय हो या फिर साहित्यिक। लेकिन महाशक्ति बनने का ख़्वाब देख रहा हमारा देश अपनी मुख्य भाषा अंग्रेज़ी को बनाना चाहता है...! आप ही बताइए क्या इसका ऐसे में महाशक्ति बनना संभव है?
लोगों का तर्क होता है कि अंग्रेज़ी विज्ञान एवं तकनीकी की भाषा है, इसलिए यह यहाँ अनिवार्य है। तो आपको बता दूँ कि विज्ञान और तकनीकी में सबसे ज़्यादा नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाला देश इज़राइल है और उसकी भाषा अंग्रेज़ी नहीं है, उसकी प्रथम भाषा हिब्रू है और दूसरी भाषा अरबी | लेकिन तकनीक के मामले में इज़राइल विश्व में सिरमौर है। हमारे आई.आई.टी. और एम्स जैसे संस्थान उसके संस्थानों के आगे पानी भरते हैं। उन लोगों के लिये इज़राइल एक उदाहरण है, जो कहते हैं कि देशी भाषाएं केवल गीत, फिल्म एवं साहित्य के लिये ठीक हैं, लेकिन विज्ञान, तकनीक एवं व्यावसायिक शिक्षा के लिये अंग्रेज़ी अनिवार्य है। दुनिया भर की रिसर्च बताती हैं कि जो छात्र गणित एवं विज्ञान अपनी मातृभाषा में पढ़ते हैं, वे बाहरी या विदेशी भाषाओं में पढ़ने वालों की तुलना में अधिक मेधावी बनते हैं।
Diese Geschichte stammt aus der July 2022-Ausgabe von Samay Patrika.
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