पिपली की खेती में कोंडागांव की नई सौगात : भरपूर उत्पादन देती है एमडीपी-16
Farm and Food|January First 2023
मुख्य रूप से पिपली अब तक केरल और उत्तरपूर्वी राज्यों के कुछ क्षेत्रों में ही उगाई जाती रही है.
भानु प्रकाश राणा
पिपली की खेती में कोंडागांव की नई सौगात : भरपूर उत्पादन देती है एमडीपी-16

माना जाता था कि अन्य क्षेत्रों में इस की खेती हो ही नहीं सकती, लेकिन अब छत्तीसगढ़ के कोंडागांव से देश के किसानों के लिए एक अच्छी खबर आ रही है. यहां केरल की बहुमूल्य फसल मानी जाने वाली हर्बल पिपली की खेती करने में सफलता मिली है. यह काम कर दिखाया है, देशविदेश में पहचाने जाने वाले कोंडागांव, बस्तर, छत्तीसगढ़ के किसान डा. राजाराम त्रिपाठी के नेतृत्व में उन की 'मां दंतेश्वरी हर्बल समूह' की टीम ने.

पिपली जमीन पर ही फैलने वाली बहुवर्षीय लतावर्गीय बहुपयोगी वनौषधि है. इस के फलों को सुखा कर उपयोग किया जाता है, जिसे पिपली, पिप्पली या लेंडी पीपल के नाम से भी जाना जाता है. इस के पत्ते भी काली मिर्च और पीपल की तरह ही दिखाई देते हैं, पर आकार में छोटे होते हैं..

कोंडागांव के 'मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म और रिसर्च सैंटर' में पिछले कई सालों के शोध के बाद इस की नई प्रजाति का विशुद्ध जैविक परंपरागत पद्धति से विकास किया है. इसे 'मां दंतेश्वरी पीपली - 16' (एमडीपी-16) का नाम दिया गया है. प्रयोगशाला परीक्षण से पता चला है कि कोंडागांव की पिपली की गुणवत्ता भी है परंपरागत पिपली से काफी अच्छी है.

यह प्रजाति कम सिंचाई या बिना सिंचाई वाले क्षेत्र में भी ही वृक्षारोपण के साथ, बिना किसी विशेष देखभाल के अच्छा उत्पादन देती है.

Diese Geschichte stammt aus der January First 2023-Ausgabe von Farm and Food.

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