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नैनो उर्वरकों का सतह क्षेत्र अधिक होता है. यह मुख्य रूप से कणों के बहुत कम आकार के कारण होता है, जो पौधे प्रणाली में विभिन्न चयापचय प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए अधिक साइट प्रदान करते हैं, जिस के परिणामस्वरूप अधिक प्रकाश संश्लेषण होता है. उच्च सतह क्षेत्र और बहुत कम आकार के कारण अन्य यौगिकों के साथ उन की उच्च प्रतिक्रियाशीलता होती है. पानी जैसे विभिन्न विलायकों में इन की उच्च विलेयता होती है.
नैनो कण पोषक तत्त्वों का उपयोग दक्षता बढ़ाते हैं और पर्यावरण संरक्षण की लागत को कम करते हैं. फसलों की पोषण सामग्री और स्वाद की गुणवत्ता में सुधार होता है. लोहे का में इष्टतम उपयोग और गेहूं के दाने में प्रोटीन की मात्रा में वृद्धि होती है. रोगों का प्रतिरोध कर के पौधों की वृद्धि में वृद्धि और फसलों की गहरी जड़ें और झुकने से पौधों की स्थिरता में सुधार ने यह भी सुझाव दिया कि नैनो तकनीक के माध्यम से फसल के पौधे से संतुलित उर्वरक प्राप्त किया जा सकता है.
अमेरिकी भौतिक विज्ञानी और नोबेल पुरस्कार विजेता रिचर्ड फेनमैन ने वर्ष 1959 में नैनो टैक्नोलौजी की अवधारणा का परिचय दिया. 15 वर्षों के बाद एक जापानी वैज्ञानिक नोरियो तानिगुची वर्ष 1974 में 'नैनो टैक्नोलौजी' शब्द का उपयोग और परिभाषित करने वाले पहले व्यक्ति थे : 'नैनो टैक्नोलौजी में मुख्य रूप से एक परमाणु या एक अणु द्वारा सामग्री के पृथक्करण, समेकन और विरूपण का प्रसंस्करण शामिल है.'
Diese Geschichte stammt aus der February First 2023-Ausgabe von Farm and Food.
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सेहत के लिहाज से फायदेमंद मानी जाने वाली कई फसलें खेती न किए जाने से विलुप्त होने के कगार पर हैं. इन में कुछ ऐसी फसलें हैं, जो न केवल अपने औषधीय गुणों के चलते खास पहचान रखती हैं, बल्कि इन में उपलब्ध पोषक गुण व्यावसयिक नजरिए से भी बेहद खास माने जाते हैं.
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बस्तर से निकला 'ब्लैक गोल्ड' छत्तीसगढ़ को मिला खास तोहफा
देश के इतिहास में अब एक और नया अध्याय जुड़ गया है. नक्सली हिंसा के लिए कुख्यात बस्तर अब अपनी एक नई पहचान बना रहा है. छत्तीसगढ़ का यह इलाका अब 'हर्बल और स्पाइस बास्केट' के रूप में दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है.
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कुट्टू उगाने की नई तकनीक
कुट्टू की खेती दुनियाभर में की जाती है. चीन, दक्षिण कोरिया, जापान, यूरोप, कनाडा समेत अन्य देशों में भी इस की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. वहीं भारत की बात करें, तो उत्तरपश्चिमी हिमालयी क्षेत्रों में इस की खेती अधिक की जाती है.
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फरवरी का महीना खेतीबारी के लिए बहुत अहम है, क्योंकि यह मौसम फसल और पशुओं के लिए नाजुक होता है, इसलिए किसानों को कुछ एहतियात बरतने चाहिए:
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पथरीली जमीन पर उगाया अमरूद का बगीचा
पथरीली जमीन पर खेती करना हमेशा से चुनौती भरा होता है, लेकिन सतना जिले के कृष्ण किशोर ने 30 साल से बंजर पड़ी जमीन पर अमरूद का बगीचा लगाया और अब हर साल लाखों रुपए की आमदनी ले रहे हैं.
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वर्मी कंपोस्ट का कारोबार : कमाई के हैं इस में मौके अपार
खेती में अंगरेजी खाद के साथ ही जहरीली दवाओं, रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल से पैदावार तो बढ़ी, लेकिन इन का असर हवा, पानी, मिट्टी समेत पूरे माहौल पर पड़ा है.
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मटर एक महत्त्वपूर्ण दलहनी एवं सब्जी फसल है. यह दूसरी नकदी फसलों की तुलना में अधिक उगाई जाती है. हरी मटर प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, विटामिन जैसे कई खनिज का प्रमुख स्रोत है. मटर की जैविक खेती आज की जरूरत है.
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निटोड एक तरह का बहुत ही सूक्ष्म धागानुमा कीट होता है, जो जमीन के भीतर पाया जाता है. वैसे, निमेटोड कई तरह के होते हैं.
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बछड़े में डायरिया, ऐसे बचाएं
यदि बछड़े को दस्त हो जाए, तो सब से पहले शरीर में पानी और इलैक्ट्रोलाइट्स की कमी को पूरा करना जरूरी है.