फसल उत्पादन में खरपतवार द्वारा बहुत ज्यादा नुकसान (तकरीबन 37 फीसदी) होता है, जबकि बीमारियों से 26 फीसदी, कीड़ेमकोड़ों से 20 फीसदी, स्टारे पेस्ट से 7 फीसदी, चूहे आदि से 6 फीसदी और दूसरी वजहों से 8 फीसदी नुकसान होना किसानों के लिए चिंता की बात है.
सभी फसलों में खरपतवार प्रबंधन एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण कारक है. विभिन्न फसलों में खरपतवारों द्वारा उपज में 10 से 15 फीसदी से कभीकभी 100 फीसदी तक नुकसान हो जाता है. इस के साथसाथ खरपतवार द्वारा दूसरी तर की भी समस्याएं पैदा हो जाती हैं.
फसल की अवस्था
खेत में खरपतवारों का अंकुरण फसल के साथ ही शुरू हो जाता है और यह कभीकभी 2-3 बार में भी होता है. शुरू के 25 से 30 दिनों और बाद के 60-70 दिनों के बाद खरपतवार 120-150 दिन अवधि वाली फसलों में आमतौर पर ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाते पर 25-30 दिनों से ले कर 60-70 दिनों की फसल की अवस्था में खरपतवार का नियंत्रण बहुत जरूरी है, वरना फसलों की उपज में बहुत ज्यादा खराब होने का डर रहता है.
प्रबंधन की विधियां
सामान्य रूप से किसान खरपतवार को खुरपी द्वारा ही निकालते हैं. साथ ही, दूसरी मशीनों का इस्तेमाल कर के भी खरपतवारों का प्रबंधन किया जाता है. पर कुछ वजहों से वर्तमान में खुरपी द्वारा निराई किया जाना मुश्किल होता जा रहा है. इस से समय की बहुत ज्यादा बरबादी होती है.
रबी मौसम के प्रमुख खरपतवार
Diese Geschichte stammt aus der January First 2024-Ausgabe von Farm and Food.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.