अलसी एक प्रकार का तिलहन है। इसका बीज सुनहरे रंग का तथा अत्यंत चिकना होता है। फर्नीचर के वार्निश में इसके तेल का अब भी प्रयोग होता है। आयुर्वेदिक मत के अनुसार अलसी वातनाशक, पित्तनाशक तथा कफ निस्सारक भी होती है। मूत्रल असर एवं व्रण रोपण, रक्त शोधक, दुग्धवर्धक, ऋतु स्राव नियामक, चर्म विकार नाशक, सूजन एवं दर्द निवारक, जलन मिटाने वाला होता है। ये यकृत, अमाशय एवं आंतों की सूजन दूर करता है। बवासीर एवं पेट विकार दूर करता है। सुजाक नाशक तथा गुर्दे की पथरी दूर करता है। अलसी में विटामिन बी एवं कैल्शियम, मैग्नीशियम, कॉपर, लोहा, जिंक, पोटेशियम आदि खनिज लवण होते हैं। इसके तेल में 36 से 50 प्रतिशत ओमेगा-3 होता है।
विभिन्न रोगों में उपयोग
गांठ एवं फोड़ा होने पर- अलसी में व्रण रोपण गुण है। गांठ या फोड़ा होने पर अलसी को पीसकर थोड़ा पानी एवं थोड़ा सा दूध मिलाकर उसमें एक ग्राम साफ हल्दी पीसकर मिला दें। सबको एक साथ मिलाकर आग पर पकाएं फिर पान के हरे पत्ते पर पकाए हुए मिश्रण का गाढ़ा लेप लगाकर सहने योग्य गर्म रखें, तब गांठ या फोड़े पर बांध दें। दर्द, जलन, चुभन से राहत मिलेगी और पांच-छह बार यह पुलटिश बांधने पर फोड़ा पक जाएगा या बैठ जाएगा। फूटने पर विकार पीव (बाहर) निकल जाने पर कुछ दिनों तक यही ठंडी पुलटिश बांधने पर घाव जल्दी भरकर ठीक हो जाता है।
त्वचा के जलने पर- आग या गर्म पदार्थों के संपर्क में आकर त्वचा के जलने या झुलसने पर अलसी के साफ तेल में चूने का साफ निथरा हुआ पानी मिलाकर खूब घोंट लेने पर सफेद रंग का मलहम सा बन जाता है। इसे लगाने पर पीड़ा से राहत मिलती है, ठंडक की अनुभूति होती है तथा घाव ठीक होने लगता है।
पुराने जुकाम में- 50 ग्राम अलसी के बीजों को तवे पर सेंककर पीस लें, इसमें बराबर मात्रा में मिसरी पीसकर मिला लें, दोनों को एक साथ मिलाकर शीशी में भरकर रखें, इसकी पांच ग्राम की मात्रा को गर्म पानी के साथ कुछ दिनों तक लेने से कफ बाहर निकल जाता है। अलसी का कफ निस्सारक गुण होने से सारा कफ विकार बाहर निकल जाता है। फेफड़े निरोग हो जाते हैं और जुकाम से मुक्ति मिलती है।
Diese Geschichte stammt aus der January 2023-Ausgabe von Sadhana Path.
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तुलसी से दूर करें वास्तुदोष
हिन्दू धर्म में तुलसी का पौधा हर घर-आंगन की शोभा है। तुलसी सिर्फ हमारे घर की शोभा ही नहीं बल्कि शुभ फलदायी भी है। कैसे, जानें इस लेख से।
क्यों हुआ तुलसी का विवाह?
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सिर्फ एक ही ईश्वर है और उसका नाम हैं सत्यः नानक
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सूर्योपासना एवं श्रद्धा के चार दिन
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एक समाज, एक निष्ठा एवं श्रद्धा की छटा का पर्व 'छठ'
छठ की दिनोंदिन बढ़ती आस्था और लोकप्रियता इस बात का प्रमाण है कि कुछ तो विशेष है इस पर्व में जो सबको अपनी ओर खींच लेता है। पूजा के दौरान अपने लोकगीतों को गाते हुए, जमीन से जुड़ी परम्पराओं को निभाते हुए हर वर्ग भेद मिट जाता है। सबका एक साथ आकर बिना किसी भेदभाव के ईश्वर का ध्यान करना... यही तो भारतीय संस्कृति है, और इसीलिए छठ है भारतीय संस्कृति का प्रतीक।
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