स्नानं और ध्यान का पर्व 'मकर संक्रांति'
Sadhana Path|January 2023
वसंत के आने के पूर्व तैयारी का पर्व है मकर संक्रांति। यह पर्व हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। इस दिन सूर्य अपना अयन बदलता है। क्या महत्त्व है मकर संक्रांति का तथा कौन सी हैं इस पर्व से जुड़ी कथाएं आइए जानते हैं-
डॉ. जवाहर धीर
स्नानं और ध्यान का पर्व 'मकर संक्रांति'

उत्तरायण होने का अर्थ

मकर संक्रांति अंग्रेजी 'ग्रेगोरियन कैलेंडर' की 14 जनवरी को ही आती है, इसलिए इसकी आगमन पद्धति अन्य त्योहारों से भिन्न है। मकरादि छह तथा कर्कादि छह राशियों का भोग करते समय सूर्य देव क्रमश: उत्तरायण और दक्षिणायन में रहते हैं। इसी दिन से सूर्य देव के उत्तरायण होने से देवताओं का ब्रह्म मुहूर्त प्रारंभ हो जाता है। अतः उत्तरायण होने पर वे देवताओं के अधिपति तथा दक्षिणायन होने पर पितरों के अधिपति होते हैं। सूर्य के उत्तरायण होने के विषय में गीता के आठवें अध्याय के 24वें श्लोक में श्रीकृष्ण कहते हैं-

'अग्निज्योतिरहः शुक्ल षड्मासा उत्तरायणम। 

तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः।।'

अर्थात् जो ब्रह्मवेत्ता योगी उत्तरायण सूर्य के छह मास, दिन के प्रकाश शुक्ल पक्ष आदि में प्राण त्यागते हैं, वे ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। 

मकर संक्रांति का प्रारंभ

प्रचलित लोक कथा के अनुसार मकर संक्रांति पर्व का प्रारंभ गुरु गोरखनाथ द्वारा हुआ। गोरखनाथ मंदिर में इस दिन खिचड़ी मेला लगता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने शंखासुर का वध करके त्रिवेणी में स्नान किया था तभी से स्नान का महत्त्व बढ़ने लगा। ऐसी भी मान्यता है कि आज ही के दिन श्रीकृष्ण ने मामा कंस द्वारा भेजी गई लोहिता नाम की राक्षसी का वध किया था। इस घटना के फलस्वरूप मकर संक्रांति के दिन पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर आदि उत्तर भारतीय राज्यों में लोहड़ी का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।

पूरा दिन होता है पुण्य काल

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