शरीर में होने वाली व्याधियों के मुख्य कारण वात, कफ और पित्त हैं। इन्हीं की अधिकता से शरीर में रोगों का जन्म होता है। इन्हीं रोगों में से होने वाला एक रोग है बुढ़ापे में होने वाला जोड़ों का दर्द। यह रोग वायु (वात) की अधिकता के कारण उत्पन्न होता है। इसे और भी अन्य नाम गठिया, वात, संधिवात से जाना जाता है। इस रोग के कारण हाथों, पैरों, कमर के जोड़ों में दर्द रहता है। इसके कारण दुर्गंधयुक्त पसीना, प्यास, सिर दर्द रहता है। जोड़ों का दर्द अनेक प्रकार का होता है। ठोड़ी का जकड़ना, स्वाद नष्ट होना, गर्दन, कमर, हाथ-पैर अकड़ना, पक्षाघात होना भी संधिवात में ही शामिल है। जब जोड़ विकृत अवस्था में, टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं तो 'रूमैटाइड संधिशोथ' कहलाता है। इसमें प्रातः उठने पर उंगलियों, हाथों, पैरों, कमर में अकड़न होती है। जो शरीर को थकावट का एहसास कराती है।
जोड़ों के दर्द का कारण
मुंह की गंदगी, चिंता, अशांति, भय, शोक, अनिच्छा का काम, पानी में भीगना, ठंड लगना, आतशक, सूजाक, अधिक स्त्री प्रसंग, ठंडी-रूखी चीजें खाना, ज्यादा रात्रि - जागरण, चोट लगना, अधिक रक्तस्राव, अधिक श्रम, मोटापा, ज्वर होना, खून की कमी, धूप लगने आदि कारणों से संधिवात होता है।
जोड़ों में यूरिक एसिड जमा होने, पोषक तत्त्वों की कमी, यक्ष्मा, विभिन्न रोगाणुओं के आक्रमण, शरीर में प्रतिरोधक क्षमता की कमी, भोजन में खनिज लवण और विटामिनों की कमी से यह रोग पैदा होता है।
उपचार
संधिवात में सेक, मालिश, भाप-स्नान, व्यायाम लाभदायक है। अक्सर संधिवात के साथ निमोनिया भी हो जाता है। निमोनिया हो जाए तो पहले निमोनिया की चिकित्सा करें। रक्तशोधक भोजन चिकित्सा करें। दही, दाल, चावल आदि वायु बढ़ाने वाली चीजें न खाएं। इसमें अंकुरित अन्न का सेवन लाभदायक है। इसके सेवन से पेट में वायु नहीं बनती है।
इनके सेवन से बचें
सामान्यतः संधिवात में व्यक्ति को कब्ज की शिकायत रहती है। रोगी को चाहिए कि वह शरीर में कब्ज न होने दे। इसके लिए एरंड तेल का उपयोग लाभप्रद होता है।
Diese Geschichte stammt aus der January 2024-Ausgabe von Sadhana Path.
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